उत्तर प्रदेश

बाबा साहेब के चित्र से छेड़छाड़ पर बवाल: एससी-एसटी आयोग ने अखिलेश यादव के खिलाफ FIR के निर्देश दिए

लखनऊ : समाजवादी पार्टी द्वारा प्रकाशित एक विवादित पोस्टर को लेकर उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। पोस्टर में भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के चित्र को खंडित करते हुए उसके आधे हिस्से पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का चित्र दर्शाया गया, जिस पर आयोग ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एफआईआर के निर्देश दिए हैं।


⚖️ FIR दर्ज करने के निर्देश

आयोग अध्यक्ष बैजनाथ रावत ने लखनऊ के पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा है। साथ ही 5 मई को आयोग के समक्ष इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश भी दिया है।


🗣️ “समाज इस अपमान को बर्दाश्त नहीं करेगा” – बैजनाथ रावत

रावत ने सपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा:

“यह कृत्य बाबा साहेब का घोर अपमान है। यह दलित समाज की आस्था के साथ खिलवाड़ है। समाजवादी पार्टी की यही फितरत है — महापुरुषों का अपमान और राष्ट्रविरोधियों का महिमामंडन।

उन्होंने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी को इस घृणित कृत्य के लिए देश और दलित समाज से माफी मांगनी चाहिए।


🧾 मुख्य विवाद – पोस्टर में छेड़छाड़

विवाद उस समय गहराया जब समाजवादी लोहिया वाहिनी के एक पोस्टर में डॉ. अंबेडकर के चित्र को काटकर उसके दूसरे हिस्से पर अखिलेश यादव का चेहरा लगाया गया। इस पर दलित संगठनों और आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।


🧠 “दूषित मानसिकता” – रावत का बयान

रावत ने सख्त लहजे में कहा:

“अखिलेश यादव को बाबा साहेब के समकक्ष दिखाना एक दूषित मानसिकता का परिचायक है। सिर्फ फोटो में दिखाना ही नहीं, इसके बारे में सोचना भी अपराध है।”


📋 प्रमुख बिंदु:

विषयविवरण
विवादित पोस्टरडॉ. अंबेडकर और अखिलेश यादव का मिलाजुला चित्र
आयोग का फैसलास्वतः संज्ञान लेकर FIR के निर्देश
कानूनSC/ST एक्ट 1989
आरोपी संगठनसमाजवादी लोहिया वाहिनी
समयसीमा5 मई को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश

🧩 राजनीतिक माहौल गरमाया

यह मामला दलित राजनीति को लेकर एक बार फिर गर्मी पकड़ रहा है। विपक्षी दलों और सपा समर्थकों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। वहीं भाजपा और अन्य दल इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रहे हैं।


✍️ निष्कर्ष:

डॉ. अंबेडकर जैसे महापुरुषों का अपमान, किसी भी स्तर पर न केवल संवेदनशील मुद्दा है, बल्कि कानूनी रूप से भी गंभीर अपराध माना जाता है। आयोग का यह कदम समाज में एक सशक्त संदेश देने की कोशिश है कि दलित प्रतीकों और आस्थाओं का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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