कवि अरविन्द शर्मा अजनबी
आज निछावर तुझपे कर दूँ,
नव-यौवन के मोती सारे ।
अधरों से रसपान करा दूँ ,
प्रेम भरे मधुरस के प्याले॥
आज प्रणय के इस वेला में,
प्रियतम छक कर खूब पिओ।
प्यास अधूरी रहे ना मन की,
एक नहीं कई बार पिओ।।
सब नश्वर है इस जग में,
जो आया है वो जाएगा ।
प्रेम डगर पर चला नहीं जो
समय बीत पछताएगा ॥
पग अपना क्यूँ रोक रहे ?
मन के वीणा की,राग सुनो।
जले प्रेम का दीपक जगमग ,
बाती संग घृत आग भरो ॥
अगर उम्र यौवन का है तो ,
प्रेम यौवन का पूरक है।
पूरा -पूरा चक्र सृष्टि का,
रति -क्रीड़ा पर निर्भर है ॥
क्यूँ !मुख फेरे जाते हो तुम?
सृष्टि हेतु कुछ जतन करो ।
अंतर्मन में तिमिर घाना है ,
आज इसे रौशन कर दो ॥
बिना प्रेम नहीं यौवन पूरा,
प्रेम रहित यह जीवन निष्फल।
प्रेम बिना सब जग सूना है,
करे प्रेम पूजा जग प्रतिपल॥
तन – मन में उन्माद जगे ,
प्रिय आज करो ऐसा संवाद।
मेरे उर का प्रेम निमंत्रण ,
प्रियवर तुम कर लो स्वीकार।।