G20 Summit in India: जानें G20 के भारत मंडपम में लगाने के लिए शिव नटराज की प्रतिमा को ही क्यों चुना?
G20 Summit in India: दिल्ली में होने वाले G-20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit in India) की तैयारियों और सुरक्षा की चर्चा इन दिनों सुर्खियों में है। विदेशी मेहमानों के स्वागत के लिए देश की राजधानी सजकर तैयार हो चुकी है। दिल्ली की भव्यता और दिव्यता देखते ही बन रही है। बताया जा रहा है यह समिट दिल्ली में होने वाला अब तक का सबसे बड़ा आयोजन है, जिसमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होने वाले हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में 9-10 सितंबर को जी20 समिट होगी। जी20 समिट (G20 Summit in India) के लिए भारत मंडपम को भी बेहद भव्य तरीके से सजाया गया है। वहीं यहां लगाई गई शिव नटराज की अष्टधातु की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र बन गई है।
जानकारी के मुताबिक, भारत मंडपम में लगी नटराज की अष्टधातु की प्रतिमा की ऊंचाई तकरीबन 28 फीट है, जिसमें प्रतिमा की ऊंचाई 22 फीट और शेष छह फीट ऊंचाई उस प्लेटफॉर्म की है, जिस पर प्रतिमा को स्थापित किया गया है। प्रतिमा वजन करीब 18 टन है। भारतीय इतिहास को दर्शाती यह प्रतिमा जितनी खास है, उतनी ही खास इसे बनाने की प्रक्रिया भी है। यह प्रतिमा चोल वंश की याद दिलाती है, जो 9वीं शताब्दी से अपनाई जा रही है।
अष्टधातु की प्रतिमा लगाने की मान्यता
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, हर धातु में ऊर्जा होती है, अष्टधातु में आठ धातुओं का संयोजन होता है, इसीलिए इसे दिव्य ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो अष्टधातु की इसी महत्ता की वजह से देश के प्राचीन मंदिरों स्थापित मूर्तियां भी अष्टधातु की बनाई जाती थीं। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि अष्टधातु का संयोजन होने की वजह से ये अपने केंद्र के चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसके साथ ही अष्टधातु मष्तिषक पर प्रभाव डालती है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और मन को शांति भी प्रदान करती है। अष्टधातु के फायदों का उल्लेख सुश्रुत संहिता और भविष्यपुराण में भ्ज्ञी मिलता है।
अष्टधातु में कौन-कौन से धातु का होता है प्रयोग
शास्त्रों में भी अष्टधातु के महत्व को बताया गया है। अष्टधातु में सोना-चांदी, रांगा, तांबा, पीतल, जस्ता, लोहा और कांसा होता है। G-20 समिट में नटराजन की जो प्रतिमा लगाई गई है, उसे तमिलनाडु के शिल्पकार राधाकृष्णन ने अपने भाई स्वामीनाथन के साथ मिलकर बनाया है। एक इंटरव्यू में राधाकृष्णन ने बताया है कि उनका परिवार चोल वंश से ही अष्टधातु की प्रतिमा बनाने के काम में जुटा है।