अमृतकाल में राजभाषा हिंदी को मिलेंगी नई राहें..!
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनता और सरकार के मध्य जन-जन की भाषा ही संपर्क भाषा के रूप में सार्थक भूमिका अदा कर सकती है। हिंदी, भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम होने के साथ-साथ भारत की भावात्मक एकता को मजबूत करने का सशक्त जरिया है। अपनी उदारता, व्यापकता एवं ग्रहणशीलता के कारण ही हिंदी भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की पूरक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने विभिन्न मंचों पर हिंदी में संवाद कर देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिंदी को गौरवान्वित किया है, जो हमारे लिए अनुकरणीय है। आज हिंदी का प्रचार-प्रसार केवल सरकारी स्तर तक सीमित न रखकर, इसे भारत के जन- जन तक ले जाना सरकार का प्रयास है। साथ ही, न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में हिंदी भाषा का प्रकाश फैलाने का संकल्प भारत सरकार का है। भारत सरकार का राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयासरत है कि केंद्र सरकार के अधीन कार्यालयों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में हो।
इसी क्रम में 14-15 सितंबर को पुणे में राजभाषा विभाग द्वारा हिंदी दिवस समारोह एवं तृतीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इससे पूर्व वाराणसी एवं सूरत में बड़े ही भव्य स्तर पर दो राजभाषा सम्मेलनों का आयोजन हो चुका है। इस वर्ष सम्मेलन के मुख्य अतिथि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह होंगे। सम्मेलन में हिंदी से जुड़े विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण सत्रों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देशभर के हिंदी से जुड़े विद्वान हिस्सा लेंगे।
प्रेरणा और प्रोत्साहन से आगे बढ़ती राजभाषा
संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 तथा अनुच्छेद 120 व 210 में राजभाषा हिंदी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। भारत सरकार की राजभाषा नीति प्रेरणा, प्रोत्साहन एवं सद्भावना पर आधारित है। पूरे देश में भाषायी विविधता के कारण एक ही बार में हिंदी को थोपने की नीति नहीं है, अपितु इसका उत्तरोत्तर विकास करते हुए अमल में लाने की व्यवस्था की गई है। सरकारी कार्यालयों में हिंदी को स्थापित करने के भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के प्रयास काफी सफल रहे हैं। राजभाषा विभाग के द्वारा अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रम ऑनलाइन संचालित किए जा रहे हैं। ‘लीला हिंदी प्रवाह’ से भारतीय भाषाओं को सीखने व समझने में सहायता प्राप्त हुई है। स्मृति आधारित अनुवाद सॉफ्टवेयर ‘कंठस्थ’ से अनुवाद कार्य आसान हुआ है तथा हिंदी स्वयं शिक्षण सॉफ्टवेयर से प्रबोध, प्रवीण, प्राज्ञ पाठ्यक्रम ऑनलाइन किए जा सकते हैं।
हिंदी में सबसे बड़ी समस्या टाइपिंग की आती थी, वह भी अब यूनिकोड के आने के बाद पूरी तरह समाप्त हो गई है। यूनिकोड प्रणाली में जहां एक ओर ट्रांसलिट्रेशन के माध्यम से रोमन से हिंदी में टंकण किया जा सकता है, वहीं जिन्हें गैर यूनिकोड फोंट में कार्य करने की आदत पड़ गई है, उनके लिए भी टूल्स की व्यवस्था की गई है। ट्रांसलिट्रेशन का प्रयोग अधिकांश सरकारी कार्यालयों में हिंदी की टाइपिंग में किया जा रहा है, परन्तु यूनिकोड में डिफाल्ट में मिलने वाले की-बोर्ड को सीखने एवं उस पर कार्य करने की आवश्यकता है। पुराने कर्मचारियों में इसे सीखने की ललक नहीं है, परन्तु नई पीढ़ी के कर्मचारी इसे आसानी से सीख सकते हैं।
‘नराकास’ से आसान होती राहें
इसके अलावा देश भर में कार्यरत नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों (नराकास) हेतु राजभाषा विभाग द्वारा संयुक्त नराकास वेबसाइट का निर्माण किया गया है। सभी नराकास इस निःशुल्क वेबसाइट पर अपना नराकास संबंधी डाटा (सूचना) साझा करते हैं। नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां बनाने का उद्देश्य केंद्र सरकार के देश भर में फैले कार्यालयों में राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा देने और राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए एक संयुक्त मंच प्रदान करना है। इस मंच पर नराकास के सदस्य हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए उनके द्वारा अपनाई गई उत्तम नीतियों के बारे में जानकारी पर विचार-विमर्श करके तथा उसका आदान-प्रदान करके अपनी उपलब्धियों के स्तर में सुधार ला सकते हैं। समिति की वर्ष में दो बैठकें आयोजित की जाती हैं। नगर विशेष में स्थित केंद्र सरकार के कार्यालयों के प्रशासनिक प्रमुखों द्वारा इस समिति की बैठकों में व्यक्तिगत तौर पर सहभागिता करना अपेक्षित है।
राजभाषा नियम, 1976 के नियम 12 के द्वारा प्रशासनिक प्रमुखों को राजभाषा नीति के कार्यान्वयन और इस संबंध में समय-समय पर राजभाषा विभाग द्वारा जारी आदेशों के अनुपालन का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। राजभाषा विभाग (मुख्यालय) / क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों के अधिकारी इन बैठकों में भाग लेते हैं। राजभाषा विभाग द्वारा तय किए गए मानदंडों के अनुरूप राजभाषा हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने की दिशा में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने वाली नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों को राष्ट्रीय स्तर पर ‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’ तथा क्षेत्रीय स्तर पर ‘क्षेत्रीय राजभाषा पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया जाता है।
मूल सामग्री हिंदी में तैयार करने पर जोर
राजभाषा विभाग की ओर से अनेक ऐसे कार्यालय ज्ञापन भी जारी किए गए हैं, जिनमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मूल सामग्री हिंदी में तैयार की जानी चाहिए और यदि आवश्यकता हो तो उसका अंग्रेजी अनुवाद कराया जाए। इसमें भी अनेक समस्याएं हैं। अनुवादक मानते हैं कि अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करना आसान है, क्योंकि उनको अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय ढूंढने में कम समस्याएं आती हैं, जबकि हिंदी के अंग्रेजी पर्याय ढूंढने में काफी समय लग सकता है। हालांकि, नए भर्ती हो रहे कर्मचारी अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर आ रहे हैं और यह उनके लिए काफी आसान हो सकता है, परंतु मूल दस्तावेज तैयार करने वाला कर्मचारी हमेशा यही शिकायत करता है कि हम दोगुनी मेहनत क्यों करें। पहले दस्तावेज को हिंदी में तैयार करें और उसके बाद अंग्रेजी में। अतः यह समस्या तब तक बनी रह सकती है, जब तक कि सरकार यह निर्देश दें कि दस्तावेज सिर्फ हिंदी में तैयार किए जाएं।
राजभाषा में पूरा हो अमृतकाल का संकल्प
स्वतंत्रता प्राप्ति से आज तक प्रत्येक मनीषी का सपना रहा है कि भारत में शिक्षा और तकनीकी के क्षेत्र में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए। हिंदी सिर्फ राजभाषा नहीं अपितु जन-जन की भाषा बने। वर्तमान में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत आत्मनिर्भर बन रहा है। आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक है कि समस्त कार्य अपनी भाषा में किया जाए। यह तभी संभव है जब हम सभी स्वेच्छा से राजभाषा व अपनी मातृभाषा में कार्य करने के लिए कृत संकल्पित हों। उम्मीद की जानी चाहिये कि तृतीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में लोगों को हिंदी में अधिकाधिक कामकाज करने और बड़ी संख्या में युवाओं को इस भाषा को सीखने के लिए प्रेरित करने की दिशा में विचारपूर्ण चर्चा होगी। राजभाषा विभाग अपने सामूहिक एवं सार्थक प्रयासों से लक्ष्य को प्राप्त करने मे सफल होगा, उनके प्रयासों को देखकर ऐसा विश्वास सहज ही होता है।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)