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Cash For Query Case: महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द, मनमोहन सरकार में 11 सांसदों की गई थी सदस्यता

Cash For Query Case: 2005 में 11 सांसदों की गई थी सदस्यता, अब महुआ मोइत्रा पर गिरी गाज

Cash For Query Case: सवाल पूछने के बदले कैश और उपहार के मामले में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के बाद टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) की संसद सदस्यता लोकसभा से खारिज कर दी गई है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) ने पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के कृष्णानगर की टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) पर कैश और उपहार के बदले सवाल पूछने का आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद काफी हंगामा हुआ था। मामले की जांच कर रही एथिक्स कमेटी ने उनकी सदस्यता के निलंबन की सिफारिश की और अंततः शुक्रवार को लोकसभा में बहस के बाद ध्वनि मत से महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) की सदस्यता रद्द कर दी गई।

महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) की सदस्यता रद्द किए जाने पर विपक्ष ने एकबार फिर एकजुटता दिखाने की कोशिश की है। टीएमसी सांसद पर हुई कार्रवाई को पक्षपात पूर्ण बताने की कोशिश की जा रही है। जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने फैसले में 18 साल पर पहले पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के उस फैसले का जिक्र करते हुए अपना निर्णय सुनाया है। नोट फॉर क्वेरीज मामले में वर्ष 2005 में पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने इसी तरह के आरोपों के मामले में 11 सांसदों की सदस्यता रद्द कर दी थी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि संसद में परंपरा का निर्वाहन महत्वपूर्ण है। उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी द्वारा स्थापित परंपरा का पालन किया है। गौरतलब है कि 18 साल पहले पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के फैसले की तुलना तात्कालीन विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मृत्युदंड से की थी। वहीं आज भी लोकसभा अध्यक्ष के फैसले के बाद टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी ने इसे प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करार दिया।

2005 में 11 सांसद हुए थे निलंबित

बता दें कि 18 साल पहले 2005 में तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान, डिजिटल न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। इसमें ऑपरेशन दुर्योधन के तहत उन सांसदों का नाम सामने आया था, जिन्होंने कथित तौर पर पैसे के बदले में एक कंपनी को बढ़ावा देने और सदन में सवाल उठाए थे। इस स्टिंग ऑपरेशन में जिन सांसदों का नाम सामने आया था, उनमें से छह सांसद छत्रपाल सिंह लोढ़ा (ओडिशा), अन्ना साहेब एमके पाटिल (एरंडोल, महाराष्ट्र), चंद्र प्रताप सिंह (सीधी, मध्य प्रदेश), प्रदीप गांधी (राजनांदगांव, छत्तीसगढ़), सुरेश चंदेल (हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) और जी महाजन (जलगांव, महाराष्ट्र) बीजेपी के थे।

इसके साथ ही तीन सांसद नरेंद्र कुमार कुशवाहा (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश), लाल चंद्र कोल (रॉबर्स्टगंज, उत्तर प्रदेश) और राजा राम पाल (बिल्हौर, उत्तर प्रदेश) बसपा के थे और एक-एक राजद से मनोज कुमार थे और कांग्रेस से राम सेवक सिंह थे। इनमें से छ्त्रपाल सिंह लोढ़ा राज्यसभा सांसद थे।

आडवाणी ने मृत्युदंड से की थी निलंबन की तुलना

डिजिटल मीडिया में फुटेज के प्रसारण के उसी दिन, मामले की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष की तरफ से एक संसदीय समिति का गठन किया गया था। समिति के सिफारिश के आधार पर, तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 23 दिसंबर को एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया कि 10 लोकसभा सांसदों का आचरण “संसद के सदस्यों के लिए अनैतिक और अशोभनीय पाया गया है। उन्हें लोकसभा की सदस्यता से निलंबित किया जा सकता है। प्रणब मुखर्जी के इस प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया था, जबकि भाजपा की तरफ से इसका पुरजोर विरोध किया गया था। उस समय विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सांसदों के निष्कासन की तुलना मृत्युदंड से की थी।

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