गोंडा: अमरूद की खेती से कमा रहे मुनाफा, बागवानी को बनाया कमाई का जरिया
गोंडा: परंपरागत खेती से हटकर किसान अब व्यावसायिक खेती का रुख कर रहे हैं। कहीं केला तो कहीं फूल की खेती से किसान मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं मनकापुर के एक युवा किसान राजेश ने बागवानी को अपनी कमाई का जरिया बनाया है। राजेश अमरूद की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। जिले मनकापुर विकासखंड के ग्राम ललकपुर के रहने वाले किसान राजेश वर्मा ने अमरूद की खेती को अपनाकर यह साबित कर दिया है कि मन लगाकर काम किया जाए तो खेती घाटे का सौदा नहीं है। ताइवानी पिंक अमरूद की खेती से राजेश की किस्मत बदल गई है। राजेश वर्मा ने बताया कि 21 फरवरी 2023 को परंपरागत खेती से हटकर उन्होंने बागवानी शुरू की। आधे एकड़ जमीन यानि ढाई बीघे में ताइवानी पिंक अमरूद का पौधा लगाया। फैजाबाद से वह अमरूद का पौधा लेकर आए। एक पौधे की कीमत करीब 80 रुपये थी। राजेश ने बताया कि करीब 600 पौधे उन्होंने लगाए थे। अमरूद की खेती के लिए किसी रासायनिक खाद की जरूरत नहीं है । उन्होंने खेत में केवल जैविक खाद का उपयोग किया है। साथ ही समय- समय पर वर्मी कंपोस्ट डालते रहेते हैं। इससे पौधों का ग्रोथ तेजी से साथ होता है।
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पौधों के बीच की दूरी 5 से 6 फुट के हिसाब से रखी है, ताकि पौधों को पर्याप्त मात्रा में धूप, हवा और पानी मिलता रहे। 6 महीने के भीतर ही पौधों ने फल देना शुरू कर दिया। व्यापारी खेत से ही 40-50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से अमरूद खरीद ले जाते हैं। इसलिए इसे बाजार ले जाने की जरूरत भी नहीं है। राजेश ने बताया कि वह अब तक 22 क्विंटल अमरूद बेंच चुके हैं। उन्होंने बताया कि इसकी बागवानी करना भी बेहद आसान है और सीजन में किसान इससे तगड़ी कमाई कर सकते हैं।
ताइवान पिंक वैरायटी के अमरूद की मार्केट में काफी डिमांड
राजेश बताते कि ताइवान पिंक वैरायटी के अमरूद की मार्केट में काफी डिमांड है। ताइवान पिंक की खासियत है की इसका बीज मुलायम होता है। वहीं इसके अंदर का लेयर पिंक रंग का होता है जो खाने में बेहद क्रिस्पी और मीठा लगता है। इस अमरूद में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी और मिनरल्स पाए जाते है। अमरूद के अन्य पौधे जहां दो से तीन साल में फलते है वहीं ताइवान पिंक के पौधे में 6 महीने में फल तैयार हो जाता है। यह पूरे साल फल देता है। तीन तीन महीने के अंतराल पर फूल के साथ फल खिलता है। इसके पौधे की ऊंचाई अधितम 5 से 6 फिट होती है। जिसकी समय समय पर कटान की जाती है और इसके नए तनो में फल लगते हैं। इस अमरूद में कीड़े भी कम लगते हैं।
बीएससी बीएड हैं राजेश, कृषि विज्ञान केंद्र से मिली अमरूद के खेती की प्रेरणा
अमरूद की खेती कर रहे युवा किसान विज्ञान विषय से स्नातक हैं। उन्होने बी एड भी कर रखा है लेकिन नौकरी के लिए प्रयास नहीं किया। राजेश ने कहा कि उनका मन पहले से ही खेती-किसानी की तरफ रहा है। इसलिए नौकरी करने के बारे में कभी कोई विचार नहीं आया। राजेश के गांव के बगल में कृषि विज्ञान केंद्र है जहाँ वे अक्सर जाया करते हैं। कृषि वैज्ञानिक डा रामलखन सिंह से उन्हे अमरूद की बागवानी करने की सीख मिली और उन्ही के निर्देशन में वह बागवानी कर रहे हैं।
NEWS SOURCE Credit : amritvichar