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Mahakumbh 2025: कुम्भ की मोनालिसा स्वरचित रचना

Mahakumbh 2025: 

लेखक: अरविंद शर्मा अजनबी 

लखनऊ उत्तर प्रदेश

साँवली सूरत वाली लड़की,

होंठों पर मुस्कान लिए !

वह बेंच रही थी मालाएं,

मन में अपने अरमान लिए ॥

 

था उसे पता इस महाकुंभ में,

मालाएं बिक जाएगी ।

कटेंगे दिन ग़ुरबत के मेरे,

कुछ ख़ुशियाँ आ जाएंगी॥

 

पर दुश्चरित्र नज़रों ने उसपर,

कुछ ऐसे प्रहार किए।

वह छोड़ चली प्रयागराज ।

कर में निज माला हार लिए ॥

 

यह बात तनिक भी झूठ नहीं ,

कि मोनालिसा ने नाम किया।

पर कुछ लुच्चों ने बिटिया को,

यह भी सच है! बदनाम किया॥

 

कोई कहा विश्व सुन्दरी है,

कोई कहा उर्वशी रम्भा है।

लगी बताने विश्व मीडिया,

जैसे नवम अचम्भा है ॥

 

जिस-जिस ने, देखा उसको,

वह हर नजरों से छली गयी,

हार बेचने आयी थी और,

हार मानकर चली गयी॥

 

यदि ऐसे कलुषित मन वाले,

ही डुबकी कुम्भ लगाएँगे ।

तो महातीर्थ संगम नगरी में ,

कहाँ पाप धुल पाएँगे ।!

 

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