
भोपाल, 7 फरवरी। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का कहना है कि भाषाएं और माताएं अपनी संतानों से ही सम्मानित होती हैं। इसलिए भारतीय भाषाओं को सम्मान दिलाने के लिए हमें ही आगे आना होगा।
वे नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में व्याख्यान दे रहे थे। भारत मंडपम के थीम पवेलियन के हाल नंबर-5 में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. द्विवेदी ने ‘राजभाषा हिंदी: अनुप्रयोग के विविध आयाम’ विषय पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर प्रख्यात व्यंग्यकार सुभाष चंदर, लेखक और तकनीकविद् बालेंदु शर्मा दाधीच, उपन्यासकार अलका सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन ललित लालित्य ने किया, जबकि एनबीटी के मुख्य संपादक कुमार विक्रम ने अतिथियों का स्वागत किया।
भारतीय भाषाओं के सम्मान का समय
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक स्तर पर हिंदी को नई पहचान दिलाई है, जबकि गृहमंत्री अमित शाह राजभाषा के क्रियान्वयन में संकल्प शक्ति से जुटे हैं। यह समय सभी भारतीय भाषाओं के लिए “अमृतकाल” है। इस अवसर का लाभ उठाकर हम अपनी भाषाओं को न्याय दिला सकते हैं।
उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता ने भारतीय भाषाओं और मानस की स्वतंत्र चेतना पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। इससे मुक्ति के लिए सामाजिक आंदोलन की जरूरत है, जिसमें सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा। भारत स्वभाव से बहुभाषी राष्ट्र है, इसलिए हमें सभी भाषाओं को प्रोत्साहित करने वाला वातावरण बनाना होगा।
समाज और सरकार की भूमिका अहम
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने से ही हम चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। भाषा और संस्कृति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर ही हम अपनी अस्मिता और पहचान को बचा सकते हैं।
इस अवसर पर साहित्यकार रिंकल शर्मा, पत्रकार मुकेश तिवारी (इंदौर), अर्पण जैन सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।