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UP News: प्रवासी पक्षियों के लिए सर्दियों में पिकनिक स्पॉट बन जाता है कोल्हूआ,पैकौली ताल

अरविंद शर्मा महराजगंज 

UP News: – हज़ारों किलोमीटर की यात्रा तय करने के बाद साइबेरिया और दक्षिण एशिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा इन दिनों निचलौल ब्लॉक अंतर्गत कोल्हुआ और पैकौली गाँव के ताल में देखने को मिल रहा है।कौआरी,लालसर( रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड )दक्षिण एशियाई सारस,साइबेरियन सारस और सुर्खाब जैसे प्रवासी पक्षी हर साल नवंबर दिसंबर के महीने में यहाँ आते हैं।

वैसे तो यह प्रवासी मेहमान अप्रैल-मई तक भारत में रहने के बाद अपने देश वापस लौटते हैं, लेकिन इन तालों में प्रवासी पक्षियों का ठहराव मार्च के पहले हफ़्ते तक ही रहता हैं।उसके के बाद यह अन्य स्थान के लिए रवाना हो जाते हैं।

साइबेरिया में सर्दियों के दौरान तापमान लगभग-25०C से नीचे चला जाता है,जिससे इनके लिए वहाँ रहना मुश्किल हो जाता है, कड़ाके की ठंड से बचने के लिए यह पक्षी भारत की ओर अपना रूख करने लगते हैं, साइबेरिया में बर्फबारी के कारण भोजन की कमी हो जाती है,जबकि भारत के झीलों और नदियों में इन्हें भोजन आसानी से मिल जाता है।यहाँ का वातावरण इनके प्रजनन के लिए भी कॉफ़ी अच्छा होता है।हालाँकि सभी प्रवासी पक्षी भारत में अंडे नहीं देते।

कुछ प्रजातियाँ साइबेरिया में ही प्रजनन करते हैं।बार-हेडेड गूज ( राजहंस ) साइबेरियन रूबीथ्रोट जैसे कुछ अन्य प्रवासी पक्षी हिमालयी क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में प्रजनन करते हैं,और अंडे देते हैं।इनके प्रजनन का समय दिसंबर जनवरी तक होता है,फरवरी मार्च तक बच्चों का शारीरिक विकास हो जाता है,इस दौरान बच्चे तेज़ी से बढ़ते हैं अप्रैल तक इनके पंख काफ़ी मज़बूत हो जाते हैं।और ये उड़ने का अभ्यास भी कराने लगते हैं, ताकि वापस साइबेरिया तक की लंबी दूरी तय कर सकें,

वापस जाते समय तक इनके बच्चे वयस्क तो नहीं रहते, लेकिन युवा हो चुके होते हैं।जब ये बच्चे वापस साइबेरिया के लिए पहली बार उड़ान भरते हैं तो अपने माता-पिता के साथ समूह में उड़ते हैं, और आगे चलकर यह स्वतंत्र रूप से प्रवास करना सीख जाते है।

प्रवासी पक्षी अपने प्राकृतिक जीवन चक्र को बनाए रखते हैं,और हर साल यही चक्र दोहराते हैं। भरत तक आने के लिए साइबेरियन क्रेन ,बार हेडेड गूज, रूडी शेलडक और अन्य प्रवासी पक्षियों को क़रीब 7,000 किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी तय करनी पड़ती है, यह पक्षी लगातार उड़ान भरने के बजाय कई छोटे-छोटे विराम लेते हैं,

रूस के उत्तरी भाग से उड़ान भर कर भारत पहुँचने के लिए ज़्यादातर प्रवासी पक्षी सेन्ट्रल एशियन फ्लाई-वे (CAF) का उपयोग करते हुए लगभग आधा सफर तय करने के बाद मंगोलिया और कज़ाखस्तान में अपना पहला पड़ाव करते हैं।और कुछ दिन वहाँ विश्राम करने के बाद तिब्बत, नेपाल और हिमालय पर्वत शृंखला को पार करते हुए भारत में प्रवेश करते हैं,

यह पक्षी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात, ओड़िसा तथा भारत के विभिन्न हिस्सों में आते हैं अलग-अलग जगहों पर इनकी अलग-अलग प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं,

जब साइबेरिया में गर्मी बढ़ने लगती है तो यह पक्षी वापस अपने उसी मार्ग से साइबेरिया के लिए रवाना हो जाते हैं। प्रवास के दौरान यह पक्षी V आकार के समूह में उड़ान भरते हैं जिससे हवा में ऊर्जा की बचत होती है, उड़ान भरने के लिए यह पक्षी सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की मदद से सही दिशा में उड़ते हुए अपने वतन को वापस पहुँच जाते हैं।

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