विचार
Original Design: सफ़र ज़िन्दगी का
रचनाकार: दीपान्जली शर्मा
Original Design: ज़िन्दगी की हक़ीक़त से,
मुँह मोड़ नही सकते।
बचपन की मौज मस्ती ,
हम भूल नहीं सकते ॥
बढ़ती हुई ये उम्र और,
ज़िन्दगी की भागदौड़ ।
समय नही किसी को,
कहाँ है! किसका ठौर ।।
ज़िम्मेदारीयों का बोझ ,
इस क़दर से आ गया है।
कौन दोस्त है कहाँ अब,
नहीं याद आ रहा है॥
अब ज़िन्दगी से मालिक,
लगने लगा क्यूँ डर !
समय बहुत ही कम है ,
लम्बा है! ये सफ़र ॥
मालिक मेरे बस तुमसे
छोटी सी इल्तिजा है ।
हंसते बीते ये जीवन,
बस इतनी सी रजा है ॥
विपदा अगर जो आए,
हँसते हुए कट जाए ।
हिम्मत प्रभु तुम देना ,
ना पैर डगमगाए ॥
जब-तक रहे ऐ जीवन,
ना पाप हो इस तन से।
परहित करूँ मैं सेवा,
पूरे ही मन लगन से ॥
सबका ही इस जगत में,
कल्याण करना स्वामी।
मिले तेरा चरण-रज ,
मन हो मेरा अनुरागी ॥