उत्तर प्रदेशलखनऊ

पहलगाम की वह चीख: नवविवाहिता की त्रासदी पर आधारित कविता ने झकझोरा देश का दिल

एक नवविवाहित जोड़े के हनीमून के दौरान हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में लिखी गई मार्मिक कविता, जिसने कश्मीर की असलियत और आतंक के दर्द को शब्द दिए।

लखनऊ: हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को फिर से झकझोर कर रख दिया है। इस घटना पर आधारित एक मार्मिक कविता “पहलगाम की वह चीख”, कवि अरविंद शर्मा ‘अजनबी’ द्वारा रची गई, सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। कविता एक नवविवाहिता की आँखों से उस त्रासदी को दिखाती है जिसने उसके जीवन को बिखेर दिया।

💔 कविता में भावनाओं की गहराई

कविता की शुरुआत एक नवविवाहित जोड़े के सपनों और हनीमून की खूबसूरत कल्पना से होती है। लेकिन जैसे ही अचानक आतंकी हमला होता है, वही सपने क्षण भर में राख हो जाते हैं। कविता में प्रेम, आघात, और विस्थापन की भावनाओं को इतनी गहराई से दर्शाया गया है कि पाठक खुद को उस परिस्थिति में महसूस करने लगता है।

🧨 कश्मीर की जमीनी हकीकत को उघाड़ती है कविता

“कश्मीर फूलों की घाटी है या बारूद की गंध?” इस एक सवाल के जरिए कवि ने उस सच्चाई को उजागर किया है जो अक्सर मीडिया या सियासत की चकाचौंध में दब जाती है।

🗣️ सियासत पर तीखा कटाक्ष

कविता में केवल दर्द नहीं, बल्कि सिस्टम और नेताओं पर तीखा कटाक्ष भी है — जो केवल भाषण देकर चले जाते हैं लेकिन पीड़ितों के जीवन में आए अंधकार का कोई समाधान नहीं देते।

👩‍🦳 नारी के नजरिए से आतंक का चित्रण

इस कविता की सबसे विशेष बात यह है कि यह नारी दृष्टिकोण से लिखी गई है — न कोई मजहब, न कोई राजनीति — सिर्फ एक स्त्री जिसने पति खोया, सपने तोड़े और ज़िंदगी का अर्थ बदलते देखा।


📜 कविता का भावार्थ और सामाजिक संदेश

पहलगाम की वह चीख

अभी तो माँग में सिन्दूर था,
चूड़ियों में छनक बची थी,
हँसी थी नए अरमानों की,
आँखों में चमक बची थी।

नवविवाहिता थी,सपनों की रानी,
जीवन की एक नयी कहानी।
पहलगाम की ठंडी वादियाँ,
गूंज रहीं थीं मधुर रवानी।

साथ खड़ा जो वर था उसका,
प्रेम-भरा हमराज़ वही।
अभी अभी थामा था हाथ,
अब गिरा ज़मीं पर नि:श्वास वही।

हनीमून था या कालदूत?
चुपके से आ बैठा था साथ,
सपनों को लील गया पल में,
कफ़न ने ले ली सातों बात।

वो लम्हे जो मुस्कान लिए थे,
अब लथपथ हैं लहू में कहीं,
इश्क़ हार गया नफ़रत से,
डूबा जुनून आहों में वहीं।

बारूदों ने बोली बोली,
दिल में तीर चलाए हैं।
दुल्हन बनी विधवा उस पल,
विधि ने कैसे खेल रचाए हैं?

कौन-सा पाप किया था उसने,
जो यह दुःख पाया है?
क्या फिर सियासत की बंदूक़ों ने,
प्यारी बिटिया को रुलाया है?

अब हर रात वो रोती है,
न हिन्दू है, न मुसलमानी।
बस एक नारी, टूटी नारी,
जिससे छिनी उसकी जवानी।

क्या यही है वो कश्मीर,
जहाँ फूलों की खुशबू बस्ती है ?
या अब वहाँ हर साँसों में,
सिर्फ़ बारूद की गंध बसती है ?

नेता आए, भाषण बोले,
दुख की लिपि सजाई,
पर जिसने अपना जीवन खोया,
उसे कौन लौटाए भाई?

सूखी नहीं अभी तक मेहंदी,
पर उसका रंग बदल गया।
मंगलसूत्र है गले में अब भी,
पर उसका अर्थ फिसल गया।

अरविंद शर्मा अजनबी
लखनऊ उत्तर प्रदेश

इन पंक्तियों में सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि हर वह स्त्री है जो आतंकवाद की भेंट चढ़ चुकी है। यह कविता आतंक के खिलाफ जनमानस को झकझोरने की ताकत रखती है।


🔚 निष्कर्ष

“पहलगाम की वह चीख” केवल एक कविता नहीं, एक दस्तावेज़ है उस दुःख का, जो शब्दों में समा सका। यह कश्मीर की उस सच्चाई को सामने लाता है, जिसे अक्सर ‘खूबसूरत घाटी’ की चादर ढक देती है। कवि अरविंद शर्मा ‘अजनबी’ ने न सिर्फ एक दुखद घटना को संवेदनशीलता से शब्द दिए, बल्कि देश को सोचने पर मजबूर कर दिया।

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