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पहलगाम के जंगलों में छिपे आतंकी सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहे: 113 गिरफ्तारियां, 20 लाख का इनाम, फिर भी NIA खाली हाथ

22 अप्रैल को टूरिस्ट पर हुआ हमला बना पहेली, एक महीना बाद भी न तो आरोपी पकड़े गए, न ही मास्टरमाइंड का कोई सुराग

श्रीनगर। 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर की बायसरन घाटी, पहलगाम में जो कुछ हुआ, उसने देश को झकझोर कर रख दिया। तीन आतंकी जंगलों से आए, करीब 15 मिनट तक टूरिस्टों से धर्म पूछ-पूछकर गोली मारते रहे। इस नरसंहार में 26 लोगों की जान चली गई। आज एक महीना हो गया है, लेकिन NIA, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना की लाख कोशिशों के बावजूद हमलावरों का कोई सुराग नहीं मिला है।


कैसे हुआ हमला?

22 अप्रैल की सुबह, पर्यटक बायसरन घाटी की पहाड़ियों में ट्रैकिंग कर रहे थे। तभी जंगल की ओर से आए तीन आतंकियों ने हमला बोल दिया

  • उन्होंने पहले लोगों से नाम और धर्म पूछा, फिर चुन-चुनकर गोलियां बरसाईं।
  • 26 की मौके पर मौत हो गई और 9 घायल हुए।
  • आतंकी वापस उसी जंगल की ओर भाग गए, जहाँ से आए थे।

लगातार बदल रहे हैं ठिकाने

सेना और पुलिस ने इलाके में घेराबंदी कर कई ऑपरेशन चलाए, लेकिन नतीजा शून्य। जानकारी है कि आतंकी

  • जंगल के भीतर बार-बार ठिकाने बदल रहे हैं,
  • उनके पास स्थानीय मददगारों की पूरी सप्लाई चेन है,
  • और वे GPS ब्लाइंड ज़ोन में छिपते हैं जिससे डिटेक्शन मुश्किल हो जाता है।

113 गिरफ्तारियां, फिर भी कोई लीड नहीं

हमले के बाद एक महीने में

  • 113 संदिग्धों को हिरासत में लिया गया,
  • सैकड़ों घंटे CCTV फुटेज, कॉल डिटेल और ड्रोन्स से स्कैनिंग हुई,
  • लेकिन NIA अभी भी खाली हाथ है।

इससे सवाल उठता है कि

“आखिर कौन इन आतंकियों को बचा रहा है?
और क्यों सुरक्षा एजेंसियों को हर मोर्चे पर असफलता मिल रही है?”


20 लाख का इनाम, कोई मुखबिर नहीं

सरकार ने प्रत्येक आतंकी पर 20 लाख का इनाम घोषित किया है। फिर भी

  • कोई मुखबिर सामने नहीं आया,
  • स्थानीय प्रशासन से भी सहयोग की कमी की बात सामने आ रही है।

राजनीतिक और राष्ट्रीय चिंता

इस हमले ने न सिर्फ कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि

  • देशभर में केंद्र सरकार और एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी आलोचना हो रही है।
  • विपक्ष इसे इंटेलिजेंस फेल्योर बता रहा है।

क्या NIA के हाथ बंधे हैं?

सूत्रों के अनुसार NIA को

  • स्थानीय स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप झेलना पड़ रहा है,
  • और कई बार जांच की डायरेक्शन बदल दी जाती है

इससे मुख्य सुराग छूट जाते हैं और जांच भटक जाती है।


निष्कर्ष:

बायसरन घाटी का यह हमला अब एक सुरक्षा और खुफिया विफलता का प्रतीक बन चुका है। देश जानना चाहता है कि

  • एक महीने बाद भी हमलावर आजाद कैसे घूम रहे हैं?
  • क्या एजेंसियों की ताकत से ज्यादा मजबूत हो गया है आतंक का नेटवर्क?
  • और सबसे बड़ा सवाल – कौन है जो इन आतंकियों को बचा रहा है?

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