ऑपरेशन सिंदूर में तबाह की गई PL-15E मिसाइल का मलबा बना ग्लोबल आकर्षण: अमेरिका-जापान समेत 7 देशों ने भारत से मांगा तकनीकी अवशेष
भारतीय वायुसेना द्वारा गिराई गई चीन निर्मित PL-15E मिसाइल के मलबे की तकनीकी जांच के लिए विकसित राष्ट्रों की मांग, जानना चाहते हैं इसकी क्षमताएं और कमजोरियां

नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत द्वारा एयर डिफेंस सिस्टम से गिराई गई चीनी PL-15E मिसाइल अब दुनिया भर की रक्षा एजेंसियों की जिज्ञासा का केंद्र बन गई है। सूत्रों के मुताबिक अमेरिका, जापान, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, इजराइल और ब्रिटेन जैसे 7 देशों ने भारत से इस मिसाइल के मलबे की मांग की है।
क्या है PL-15E मिसाइल?
PL-15E एक बियॉन्ड-विजुअल-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (BVRAAM) है, जिसे चीन ने विकसित किया है और इसे पाकिस्तान को निर्यात किया गया था।
- इसकी रेंज करीब 200-300 किमी मानी जाती है।
- इसे J-10 और JF-17 जैसे फाइटर जेट्स से लॉन्च किया जा सकता है।
- इसमें Active Radar Homing System लगा होता है।
ऑपरेशन सिंदूर में कैसे हुआ इसका अंत?
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सीमावर्ती संघर्ष के दौरान,
- पाकिस्तानी वायुसेना ने चीन निर्मित PL-15E मिसाइल लॉन्च की।
- भारतीय वायुसेना के S-400 और स्वदेशी रक्षा प्रणाली ने इसे एयर में ही इंटरसेप्ट कर नष्ट कर दिया।
- यह घटना राजस्थान बॉर्डर के समीप हुई थी।
क्यों है मलबे की इतनी मांग?
दुनियाभर की रक्षा एजेंसियों को PL-15E की
- ट्रैकिंग तकनीक,
- रडार सिग्नेचर,
- और काउंटरमेजर रिस्पॉन्स में दिलचस्पी है।
मलबा मिलने से यह जानने में मदद मिलेगी कि:
- चीन की यह मिसाइल वास्तव में कितनी घातक है।
- भारत की रक्षा प्रणाली कैसे सफल रही।
- और भविष्य में इस तकनीक से कैसे निपटा जाए।
भारत ने क्या जवाब दिया?
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार:
“यह मलबा भारत के लिए सामरिक रूप से संवेदनशील है। इसे साझा करने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों की गहन समीक्षा की जाएगी।”
संभावना है कि भारत कुछ सहयोगी देशों को आंशिक एक्सेस या टेक्निकल रिपोर्ट साझा कर सकता है।
भारत की बढ़ती ताकत का प्रमाण
इस घटना ने एक बार फिर भारतीय वायुसेना की तैयारियों और तकनीकी क्षमता को साबित किया है।
- भारत न केवल चीनी मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने में सक्षम है,
- बल्कि उसके तकनीकी विश्लेषण में भी दुनिया की मदद कर सकता है।
निष्कर्ष:
PL-15E का मलबा अब सिर्फ धातु का ढेर नहीं, बल्कि एक सामरिक खजाना है, जिसे पाने के लिए दुनिया की बड़ी ताकतें कतार में हैं।
यह घटना न केवल चीन की रक्षा तकनीक पर सवाल उठाती है, बल्कि भारत को एक ग्लोबल डिफेंस टेक लीडर के रूप में उभारती है।