
भारत : के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जितनी प्रशंसा होती है, उतनी ही आलोचना भी। लेकिन एक नजरिया यह भी है कि मोदी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक प्रतीक हैं उस गुस्से का, उस दबे हुए असंतोष का, जो वर्षों से भारतीय जनमानस में पल रहा था।
इस आलेख का आधार एक वायरल सोशल मीडिया वीडियो है, जिसे लेखक ने अपने शब्दों में ढालते हुए एक ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विश्लेषण में तब्दील किया है।
इतिहास से उठते सवाल
भारत में हिन्दू-मुस्लिम तनाव कोई नया नहीं। 1800 से लेकर 1946 के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ तक और फिर विभाजन की विभीषिका—इन सबने मिलकर देश की सामूहिक चेतना में गहरे घाव छोड़े। इस पृष्ठभूमि में गंगा-जमुनी तहजीब की वास्तविकता पर प्रश्न खड़ा किया गया है:
क्या यह केवल एक कल्पना है जिसे पाठ्यपुस्तकों ने गढ़ा?
गांधी, नेहरू और सवाल जिन पर चुप्पी साध ली गई
गांधी जी ने अंबेडकर से टकराव के समय आमरण अनशन किया, लेकिन जब जिन्ना ने देश के बंटवारे की मांग की, तब चुप्पी क्यों साधी गई?
नेहरू और कांग्रेस के दौर में शरिया कानून, शाहबानो केस, रोजा इफ्तार की राजनीति और मुस्लिम तुष्टीकरण जैसे विषयों को लेख में प्रमुखता से उठाया गया है। लेखक का तर्क है कि इससे हिंदू समाज में एक दबा हुआ असंतोष पनपा, जो धीरे-धीरे सुलगता रहा।
मुस्लिम जनसंख्या और सांस्कृतिक आक्रमण की अवधारणा
लेखक ऐतिहासिक दृष्टांत देते हैं — पर्सिया से लेकर कश्मीर तक — जहां सभ्यताएं पूरी तरह इस्लामिक हो गईं। उनका तर्क है कि भारत में भी धीरे-धीरे यही प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन हिंदुओं ने प्रतिरोध नहीं किया क्योंकि उनके पास कोई मंच नहीं था।
नरेंद्र मोदी: एक प्रतीक, एक ‘खूंटी’
मोदी को केवल नेता के रूप में नहीं, बल्कि उस ‘खूंटी’ के रूप में देखा गया है, जिस पर हिंदू समाज ने अपने वर्षों के गुस्से को टांग दिया है।
भक्त उन्हें अवतार मानते हैं, हेटर उन्हें विभाजनकारी कहते हैं, लेकिन लेखक का कहना है – “नरेंद्र मोदी व्यक्ति नहीं, एक मनोदशा हैं।”
प्रतिक्रिया के खतरे और बहस की आवश्यकता
यह लेख निश्चित रूप से विवाद का कारण बन सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य समाज में हो रही असहज चुप्पियों को तोड़ना है। क्या हम वास्तविक ऐतिहासिक तथ्यों का सामना कर पा रहे हैं, या केवल उस कथानक को दोहराते जा रहे हैं जिसे वर्षों पहले गढ़ा गया?
निष्कर्ष:
लेख किसी को महिमामंडित या अपमानित करने के लिए नहीं, बल्कि एक गहरे विमर्श के लिए आमंत्रण है। नरेंद्र मोदी को लेकर यह विचारधारा केवल राजनीति नहीं, बल्कि समाज के अंदर छिपी भावनाओं, गुस्से और असहमति की कहानी है, जिसे लंबे समय तक शब्द नहीं मिले।