200 साल की हिंदी पत्रकारिता: संवाद और संचार की दुनिया में हिंदी का डंका

नई दिल्ली:
30 मई 1826 को कोलकाता से पं. युगुलकिशोर शुक्ल ने जब ‘उदंत मार्तण्ड’ नाम से हिंदी का पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया था, तब शायद उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह भाषा देश की सबसे ताकतवर संवाद शक्ति बन जाएगी। आज, हिंदी पत्रकारिता न सिर्फ़ देश की आवाज़ बन चुकी है बल्कि डिजिटल और वैश्विक मंचों पर भी अपना परचम लहरा रही है।
पहले संपादक का सपना: ‘हिंदुस्तानियों के हित के हेत’
हिंदी पत्रकारिता का मूल उद्देश्य समाज सेवा रहा है। पं. युगुलकिशोर शुक्ल ने अपने पहले संपादकीय में लिखा था कि यह पत्रकारिता ‘हिंदुस्तानियों के हित के हेत’ होगी। दुर्भाग्य की बात है कि देश आज भी इस महान पत्रकार को समर्पित एक भी स्मारक नहीं दे पाया। उनका कोई चित्र तक उपलब्ध नहीं है, जिससे उनकी स्मृति को जनमानस में सुरक्षित रखा जा सके।
संख्या और प्रभाव में शीर्ष पर हिंदी पत्रकारिता
आरएनआई की 2024 रिपोर्ट बताती है कि भारत में पंजीकृत 1.47 लाख पत्र-पत्रिकाओं में से 45% हिंदी के हैं।
इंडियन रीडरशिप सर्वे के अनुसार हिंदी अखबारों की पाठक संख्या 38 करोड़ से अधिक है।
भारत के 750 टीवी चैनलों में 35% चैनल हिंदी में प्रसारित होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि हिंदी अब सिर्फ़ भाषा नहीं, एक संवाद की शक्ति है।
डिजिटल युग में हिंदी की तूती बोल रही
डिजिटल मीडिया में भी हिंदी का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।
गूगल-केपीएमजी रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में 85 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 70% यूजर हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में सामग्री देखना और पढ़ना पसंद करते हैं।
हिंदी डिजिटल बाज़ार हर साल 20% की दर से बढ़ रहा है, और 2025 तक 15.6 करोड़ हिंदी पाठक होने का अनुमान है।
सोशल मीडिया और वीडियो प्लेटफॉर्म पर हिंदी का बोलबाला
- यूट्यूब पर हर महीने 10 अरब घंटे से अधिक हिंदी वीडियो देखे जाते हैं।
- भारत में इंस्टाग्राम के 30 करोड़ उपयोगकर्ताओं में से अधिकांश हिंदी रील्स देखना पसंद करते हैं।
- हिंदी वॉयस सर्च और वॉयस-टू-टेक्स्ट तकनीकों ने हिंदी को डिजिटल संवाद का प्रमुख माध्यम बना दिया है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हिंदी का दबदबा
कोरोना काल में ओटीटी पर हिंदी कंटेंट की लोकप्रियता नई ऊंचाई पर पहुंच गई।
- भारत का ओटीटी मार्केट 23,000 करोड़ रुपए का है, जो 2027 तक 40,000 करोड़ का हो सकता है।
- इसमें 70% से अधिक उपभोक्ता हिंदी भाषी हैं और सबसे ज्यादा ओरिजिनल कंटेंट हिंदी में तैयार हो रहा है।
निष्कर्ष: अब समय है संवेदनशील और जनपक्षधर मीडिया की ओर बढ़ने का
1826 में जिस हिंदी पत्रकारिता का बीज बोया गया था, वह आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है। अब जबकि हम हिंदी पत्रकारिता के 200 साल पूरे कर रहे हैं, यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अपने संचार माध्यमों को अश्लीलता मुक्त, जनपक्षधर, मानवीय और संवेदनशील बनाएँ।