ड्रग्स के दलदल में फंसी कश्मीर की बेटियां: बर्तन मांजकर नशे की कीमत चुका रहीं, घर-परिवार उजड़ रहे

श्रीनगर | “एक दिन मैं सोकर उठी, शाम के चार बजे थे। मां घर पर नहीं थी। पेट में जलन, उल्टियां और सांसें रुकती सी लग रही थीं। घर की हर अलमारी, हर कोना छान डाला… लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। आखिरकार, मैं किचन से बर्तन भरकर बाजार गई… उन्हें बेचकर सिर्फ इसलिए कुछ पैसे जुटाए कि नशा खरीद सकूं।”
यह दर्दनाक कहानी है 24 वर्षीय राबीना (बदला हुआ नाम) की, जो श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में रहने वाली है। कश्मीर की घाटी आज सिर्फ आतंक या राजनीति से नहीं, बल्कि एक और खतरनाक लड़ाई से जूझ रही है — ड्रग्स की महामारी, और इसकी सबसे बड़ी शिकार बन रही हैं महिलाएं, खासकर युवा लड़कियां और माताएं।
नशे के लिए बर्तन मांजती, सड़कों पर भीख मांगती लड़कियां
कश्मीर में ड्रग्स की समस्या इतनी गहराई में पहुंच चुकी है कि अब कई युवतियां बर्तन मांजने, घर-घर काम करने, या सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हैं, सिर्फ इसलिए ताकि वे हेरोइन, अफीम, या सिंथेटिक ड्रग्स खरीद सकें।
डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (MSF) की एक रिपोर्ट के अनुसार:
“हर 10 में से 1 महिला अब ड्रग्स की आदी है। सबसे ज्यादा केस श्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग और कुलगाम जिलों से आ रहे हैं।”
मां-बेटी का रिश्ता भी नशे की भेंट चढ़ा
राबीना बताती है,
“मुझे याद है एक बार मेरी 3 साल की बेटी भूख से तड़प रही थी। लेकिन मैंने घर में रखे उसके दूध और फल बेचकर हेरोइन खरीदी। उस दिन मैंने खुद को मां कहने लायक नहीं समझा।”
ये कहानी सिर्फ एक राबीना की नहीं है, बल्कि हज़ारों कश्मीरी लड़कियों और महिलाओं की है, जो या तो नशे में खुद डूब चुकी हैं, या उनके घरवाले नशे के शिकार हैं।
कैसे फैल रहा है यह जहर?
- पाकिस्तान और पंजाब से ड्रग्स की तस्करी
- बेरोजगारी और मानसिक तनाव
- हिंसा और संघर्ष की मनोवैज्ञानिक चोट
- ऑनलाइन और सोशल मीडिया के ज़रिए नशे का प्रमोशन
- सस्ते नशे (like Spasmoproxyvon, Heroin, Whitener) की आसान उपलब्धता
“बेटी ने खुद को ब्लेड से काट डाला” – एक बाप की दास्तान
कुपवाड़ा से आए गुलाम नबी बताते हैं:
“जब हमें बेटी की लत का पता चला, हमने उसे रोकने की कोशिश की। लेकिन एक दिन उसने खुद को ब्लेड से काट लिया, कहा कि अगर नशा नहीं मिला तो मैं मर जाऊंगी।”
प्रशासन की पहल नाकाफी, नशा मुक्ति केंद्र भी नहीं हैं पर्याप्त
हालांकि कश्मीर प्रशासन ने कुछ नशा मुक्ति केंद्र (Rehab Centers) बनाए हैं, लेकिन वहाँ महिलाओं के लिए सुविधाएं नगण्य हैं। न तो पर्याप्त काउंसलिंग है, न पुनर्वास के बाद रोजगार योजनाएं।
मानवाधिकार संगठनों और महिला आयोग ने बार-बार इस ओर ध्यान दिलाया है कि महिला केंद्रित नशा मुक्ति कार्यक्रमों की जरूरत है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अब भी डरावनी बनी हुई है।
समाज को बदलनी होगी सोच, नहीं तो यह आग सब कुछ जला देगी
ड्रग्स केवल एक व्यक्तिगत बर्बादी नहीं है, यह पूरे समाज, परिवार और आने वाली पीढ़ियों का विनाश है। ज़रूरत है समाजिक जागरूकता, सरकारी नीति में बदलाव, और नशे को शर्म नहीं, इलाज योग्य बीमारी मानने की सोच की।
निष्कर्ष:
कश्मीर की लड़कियों की आंखों से बहता दर्द सिर्फ आंसू नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। अगर आज नहीं जागे, तो कल यह आग हर दरवाज़े तक पहुंचेगी।
“नशा छोड़ो, जिंदगी चुनो।”