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सोनिया गांधी ने इजराइल के हमलों की निंदा की: कहा- भारत की चुप्पी परेशान करने वाली, ईरान हमारा पुराना दोस्त

नई दिल्ली। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने इजराइल के हालिया ईरान पर किए गए हमले की कड़ी निंदा करते हुए भारत सरकार की चुप्पी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने शुक्रवार को प्रकाशित ‘द हिंदू’ अखबार में एक विचार लेख में कहा कि भारत हमेशा से नैतिक और कूटनीतिक मूल्यों पर आधारित विदेश नीति का पक्षधर रहा है, लेकिन आज की चुप्पी उस परंपरा से हटने की ओर इशारा करती है।


🔴 भारत की चुप्पी शर्मनाक: सोनिया

सोनिया गांधी ने लिखा,

“भारत का ईरान से सदियों पुराना सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध रहा है। ऐसे में जब ईरान पर हमला होता है और भारत कुछ नहीं कहता, तो यह न केवल ईरान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नैतिक खालीपन का संकेत है।”

उन्होंने कहा कि भारत की इस चुप्पी से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गलत संदेश जा रहा है और इससे भारत की निरपेक्षता और नेतृत्वकर्ता भूमिका पर सवाल उठ सकते हैं।


⚠️ इजराइल का दोहरा रवैया उजागर किया

सोनिया गांधी ने इजराइल पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि

“इजराइल एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है, फिर भी वह ईरान को, जिसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं, सुरक्षा के नाम पर निशाना बना रहा है। यह दोहरे मानदंडों की नीति है, जिसे भारत जैसे जिम्मेदार लोकतंत्र को स्वीकार नहीं करना चाहिए।”


🕊️ ‘भारत को चाहिए स्पष्ट रुख’

सोनिया गांधी ने सरकार से आग्रह किया कि उसे इस मामले में जल्द, स्पष्ट और साहसी रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति हमेशा से गुटनिरपेक्षता, अहिंसा और वैश्विक शांति की पक्षधर रही है।

“अभी देर नहीं हुई है। भारत सरकार को चाहिए कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान के साथ न्याय और संतुलन के लिए आवाज उठाए।”


🏛️ राजनीतिक हलकों में मचा हलचल

सोनिया गांधी के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। कांग्रेस समर्थकों ने इसे भारत की मौजूदा विदेश नीति पर करारा प्रहार बताया है, जबकि सरकार समर्थक इसे राजनीतिक नफे के लिए की गई टिप्पणी बता रहे हैं।


🧭 निष्कर्ष:

सोनिया गांधी का यह आर्टिकल भारत की विदेश नीति को लेकर एक वैचारिक बहस की शुरुआत है। ऐसे समय में जब वैश्विक तनाव चरम पर है, भारत जैसे देश की भूमिका को लेकर स्पष्टता और साहसिक नेतृत्व की अपेक्षा की जा रही है। क्या भारत इस चुनौती को स्वीकार करेगा या फिर चुप्पी को ही नीति बनाए रखेगा—यह देखने वाली बात होगी।

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