कागज के पन्नों में सिमट गया केएम मुंशी का सपना ‘वन सप्ताह’: डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने उठाई पुनर्जीवन की मुहिम
केएम मुंशी की ऐतिहासिक सोच और वनमहोत्सव की भावना को ज़मीन पर उतारने की पहल, बक्शी का तालाब क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण अभियान का ऐलान।

लखनऊ/बक्शी का ताला: देश की पर्यावरणीय चेतना को जगा कर वृक्षारोपण के महाअभियान ‘वनमहोत्सव’ की नींव रखने वाले कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (केएम मुंशी) को आज की पीढ़ी बहुत कम जानती है। लेकिन उनके ऐतिहासिक योगदान को सामने लाने का बीड़ा उठाया है चंद्रभानु गुप्त कृषि महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह ने।
उन्होंने कहा—
“आज ‘वन सप्ताह’ केवल कागजों में सीमित हो गया है, जबकि यह हमारे भविष्य को हराभरा और सुरक्षित बनाने का सशक्त अभियान है।”
केएम मुंशी: एक बहुआयामी व्यक्तित्व
केएम मुंशी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लेखक, शिक्षाविद् और संविधान निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल राजनीति बल्कि साहित्य, शिक्षा, पर्यावरण और संस्कृति के क्षेत्र में भी गहरा योगदान दिया। गुजरात के भरूच में जन्मे मुंशी जी ने बडोदरा कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की। वे श्री अरविंद घोष, महात्मा गांधी और सरदार पटेल से विशेष रूप से प्रभावित रहे।
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स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी: होम रूल आंदोलन, सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह
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पर्यावरणीय सोच: 1950 में ‘वनमहोत्सव’ की शुरुआत केंद्रीय मंत्री रहते हुए की
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शिक्षा के क्षेत्र में योगदान: भारतीय विद्या भवन की स्थापना
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साहित्य सेवा: 127 से अधिक पुस्तकें; प्रेमचंद के साथ ‘हंस’ का संपादन
डॉ. सत्येंद्र सिंह की पहल: वनमहोत्सव को करें जीवंत
डॉ. सिंह ने कहा कि
“केएम मुंशी ने वृक्षों से प्रेम करते हुए जुलाई के प्रथम सप्ताह में ‘वनमहोत्सव’ की शुरुआत की थी, जो आज केवल औपचारिकता बन चुका है। हमें इसे पुनर्जीवित करना होगा।”
इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए बक्शी का तालाब क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है, जिसमें निम्नलिखित स्थलों को शामिल किया गया है:
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शैक्षणिक संस्थान (कॉलेज-महाविद्यालय)
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सड़क किनारे की खाली ज़मीनें
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शमशान घाट और तालाब की पट्टियां
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चारागाह और अनुपयोगी भूमि
सार्वजनिक अपील:
नगरवासियों से अपील की गई है कि वे इस अभियान को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग करें। केवल वृक्षारोपण ही नहीं, उनकी देखभाल और सुरक्षा भी उतनी ही आवश्यक है।
निष्कर्ष:
डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह की यह पहल न केवल बक्शी का तालाब को हरा-भरा बनाएगी, बल्कि केएम मुंशी जैसे विचारशील और कर्मठ राष्ट्र निर्माता की याद को भी जन-जन तक पहुंचाएगी। वन सप्ताह को केवल सरकारी दस्तावेज़ों से निकालकर धरातल पर उतारना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।