लखनऊ में कपड़ा व्यापारी दंपती ने खाया जहर: पत्नी ने सुसाइड नोट में मां-बहन को बताया जिम्मेदार, लिखा- “कर्ज बढ़ गया है, सब स्वार्थी हैं”
व्यापारी शोभित रस्तोगी दो दिन से कर रहे थे आत्महत्या की प्लानिंग, पत्नी के सुसाइड नोट ने खोले पारिवारिक कलह और आर्थिक संकट के कई राज़

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में एक दर्दनाक घटना ने शहर को हिला दिया है। कपड़ा व्यापारी शोभित रस्तोगी और उनकी पत्नी ने आर्थिक तंगी और पारिवारिक तनाव के चलते जहर खाकर आत्महत्या कर ली। शोभित की हालत गंभीर बनी हुई है जबकि पत्नी की मौत हो चुकी है। इस हृदयविदारक घटना में एक सुसाइड नोट भी सामने आया है, जो कई दर्दनाक सच्चाइयों को उजागर करता है।
🕰️ घटना की टाइमलाइन:
-
शनिवार शाम 4 बजे: शोभित ने अपनी दुकान जल्दी बंद कर दी और घर लौट आए।
-
रविवार: शोभित ने अपने भाई शेखर को चाबी देते हुए कहा कि वह पत्नी और बेटी के साथ ससुराल जा रहे हैं।
-
सोमवार सुबह: जब दरवाजा नहीं खुला, शेखर ने पुलिस को सूचना दी। दरवाजा तोड़ने पर परिवार बेहोशी की हालत में मिला।
-
पत्नी की मौके पर मौत हो चुकी थी, जबकि शोभित और बच्ची की हालत नाजुक थी।
📄 सुसाइड नोट के मुख्य अंश:
पत्नी ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मां और बहन को इस आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया है। नोट में लिखा गया:
“हम बहुत परेशान हैं। किसी से कोई मदद नहीं मिली। कर्ज बढ़ता गया और सबने मुंह फेर लिया। सब स्वार्थी हैं। मेरी मां और बहन ने भी साथ नहीं दिया।”
यह नोट यह भी दर्शाता है कि आर्थिक दबाव के साथ-साथ गंभीर पारिवारिक कलह भी आत्महत्या की वजह बनी।
📈 आर्थिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि:
-
शोभित की कपड़े की दुकान पिछले कुछ महीनों से घाटे में चल रही थी।
-
व्यापार में नुकसान और उधारी ने कर्ज का बोझ बढ़ा दिया था।
-
परिवारिक सहयोग के अभाव ने मानसिक स्थिति को और बिगाड़ दिया।
👮 जांच की स्थिति:
-
पुलिस जांच जारी है।
-
सुसाइड नोट को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है।
-
मां और बहन से पूछताछ की जा रही है।
-
घर से मिले अन्य दस्तावेज भी जब्त कर लिए गए हैं।
🚨 समाज के लिए संदेश:
यह घटना हमें एक गंभीर चेतावनी देती है कि मानसिक तनाव, अकेलापन और पारिवारिक दूरी किस हद तक ले जा सकते हैं। समाज और परिवार को सहयोगी बनना चाहिए, न कि आलोचक।
📌 निष्कर्ष:
लखनऊ की यह आत्महत्या की घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों की असफलता का आईना है। यदि समय रहते साथ दिया गया होता, तो शायद एक जीवन बचाया जा सकता था।