उद्धव और राज ठाकरे बोले- ‘हिंदी थोपना बर्दाश्त नहीं’, मराठी के लिए लड़ना है तो हम गुंडे ही सही
मुंबई के वर्ली सभागार में 'मराठी एकता' रैली, 48 मिनट के भाषण में केंद्र, भाजपा और हिंदी थोपने की नीति पर जमकर बरसे दोनों ठाकरे

मुंबई | हिंदी भाषा थोपने के खिलाफ महाराष्ट्र में एक बार फिर आवाज बुलंद हुई है। शनिवार को मुंबई के वर्ली सभागार में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने साझा मंच से ‘मराठी एकता’ रैली को संबोधित किया। दोनों नेताओं ने 48 मिनट के तीखे भाषण में केंद्र सरकार, भाजपा, और हिंदी भाषा के प्रचार के नाम पर मराठी भाषा की अनदेखी पर तीखा हमला बोला।
“अगर मराठी के लिए लड़ना गुंडागर्दी है, तो हम गुंडे हैं”
राज ठाकरे ने कहा, “अगर अपनी मातृभाषा, अपने अधिकारों और अपने महाराष्ट्र के लिए लड़ना गुंडागर्दी है, तो हां, हम गुंडे हैं। पर हम वो गुंडे हैं जो अपने लोगों के लिए, अपने संस्कारों और संस्कृति के लिए लड़ते हैं।”
वहीं उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “देश को एकता के नाम पर एकरूपता में बदलने की साजिश चल रही है। पर महाराष्ट्र ने हमेशा विविधता में एकता को प्राथमिकता दी है। हम अपनी मातृभाषा मराठी की अवहेलना नहीं सहेंगे।”
हिंदी थोपने के आरोपों पर तीखा पलटवार
राज ठाकरे ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार की नीतियों में हिंदी को ‘राष्ट्रीय पहचान’ के नाम पर जबरन थोपने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जबकि संविधान में किसी एक भाषा को जबरन थोपने की इजाजत नहीं है।
उद्धव ठाकरे ने भी कहा, “मराठी हमारी अस्मिता है। अगर मुंबई में मराठी बोलने पर भी हमें अपने अस्तित्व को सिद्ध करना पड़े, तो यह सवाल पूरे देश के लिए गंभीर है।”
भाजपा और केंद्र सरकार पर भी बरसे
सभा में दोनों नेताओं ने भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर भी तीखा हमला बोला। उद्धव ने कहा, “हमसे शिवसेना छीनी गई, पर हमारी विचारधारा नहीं। हमने कभी सत्ता के लिए अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया।”
राज ठाकरे ने व्यंग्य करते हुए कहा, “केंद्र में बैठे कुछ लोग सिर्फ भाषणों और प्रचार में माहिर हैं, जबकि ज़मीन पर असल मुद्दे जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, और सांस्कृतिक विविधता की रक्षा गायब है।”
मराठी भाषा पर विशेष कानून की मांग
सभा में यह भी मांग उठाई गई कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को सख्ती से लागू किया जाए, खासकर सरकारी कामकाज, स्कूलों और बैंकों में। इसके लिए विशेष अधिनियम लाने की बात भी की गई।
राज ठाकरे ने कहा कि अगर तमिलनाडु, बंगाल, या पंजाब अपने राज्य की भाषा को लेकर कड़े नियम बना सकते हैं, तो महाराष्ट्र क्यों नहीं?
निष्कर्ष:
‘मराठी एकता’ रैली के जरिए उद्धव और राज ठाकरे ने न केवल भाषाई पहचान को लेकर केंद्र की नीतियों पर सवाल खड़े किए, बल्कि यह भी संदेश दिया कि मराठी अस्मिता के मुद्दे पर दोनों ठाकरे एकजुट हो सकते हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले चुनावी मौसम में मराठी बनाम हिंदी का यह मुद्दा राज्य की राजनीति में कितनी गहराई से असर डालता है।