‘वन किडनी विलेज’ बना बांग्लादेश का बाइगुनी गांव: भारत आकर किडनी बेचने को मजबूर, तस्करी के शिकार ग्रामीणों को नहीं मिला पूरा पैसा
हर 35 में से एक व्यक्ति बेच चुका है अपनी किडनी, बिचौलियों के चंगुल में फंसे ग्रामीण; कई लोग एक किडनी के सहारे जी रहे जीवन

बांग्लादेश: के उत्तर-पश्चिमी जिले जॉयपुरहाट का एक छोटा-सा गांव बाइगुनी आज ‘वन किडनी विलेज’ के नाम से कुख्यात हो चुका है। गरीबी और बेरोजगारी की चपेट में आए इस गांव के हर 35 में से एक व्यक्ति ने अपनी किडनी बेच दी है। भारत में अवैध अंग प्रत्यारोपण रैकेट का शिकार बने इन ग्रामीणों की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
मजबूरी में उठाया खौफनाक कदम
बाइगुनी गांव के लोग दलालों के झांसे में आकर भारत में अपनी किडनी बेचने को मजबूर हुए। इन लोगों को बेहतर जीवन, रोजगार और मोटी रकम का लालच देकर भारत लाया गया। लेकिन हकीकत यह थी कि ऑपरेशन के बाद उन्हें वादा की गई रकम का आधा भी नहीं मिला।
भारत में करवाए गए ऑपरेशन
ज्यादातर पीड़ितों को भारत के विभिन्न राज्यों में प्राइवेट क्लीनिक या अवैध सर्जरी सेंटरों में भर्ती कराया गया, जहां उनकी एक किडनी निकाल दी गई। कई मामलों में तो मरीजों को यह तक नहीं बताया गया कि उनकी सर्जरी कब और कैसे की गई।
एक किडनी के सहारे जी रहे सैकड़ों लोग
बाइगुनी गांव में अब सैकड़ों लोग एक ही किडनी के सहारे जीने को मजबूर हैं। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। यहां के लोग आज शारीरिक और मानसिक रूप से टूटी हुई स्थिति में हैं।
सरकारी तंत्र और सुरक्षा में भारी चूक
स्थानीय प्रशासन और सरकार की ढुलमुल निगरानी के चलते ये रैकेट सालों से फल-फूल रहे हैं। न तो बांग्लादेश सरकार ने सख्त कार्रवाई की और न ही भारत में इन तस्करी चैनलों पर पूरी तरह अंकुश लगाया गया है। मानव अंग तस्करी अब अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी है।
दलालों का नेटवर्क फैला है सीमापार
इस किडनी रैकेट में शामिल दलालों का नेटवर्क बांग्लादेश-भारत सीमा के पार तक फैला हुआ है। वे गरीब लोगों की पहचान कर उन्हें झूठे सपने दिखाते हैं और फिर उन्हें भारत भेज देते हैं। कुछ मामलों में तो लोगों के पासपोर्ट और दस्तावेज तक फर्जी तरीके से तैयार किए गए।
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की जरूरत
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और WHO जैसी संस्थाओं को भी हस्तक्षेप करने की जरूरत है, ताकि इस अमानवीय धंधे को रोका जा सके।
निष्कर्ष:
बाइगुनी गांव का मामला सिर्फ एक गांव की त्रासदी नहीं, बल्कि गरीबी, अशिक्षा और भ्रष्ट तंत्र के काले गठजोड़ की तस्वीर है। यदि समय रहते इस पर ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह मानवता पर एक स्थायी दाग बन जाएगा।