गोंडा में शिक्षा विभाग की फर्जी जॉइनिंग लेटर गैंग का भंडाफोड़, दो थानों में मुकदमे दर्ज, लाखों की ठगी — पुलिस जल्द करेगी बड़ा खुलासा

🗓️ गोंडा (उत्तर प्रदेश): गोंडा जनपद में बेरोजगार युवाओं के सपनों के साथ भयानक धोखा सामने आया है। शिक्षा विभाग के नाम पर नौकरी दिलाने का झांसा देकर फर्जी नियुक्ति पत्र देने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। इस संगठित ठगी की शिकायतें मिलने के बाद कोतवाली करनैलगंज और थाना परसपुर में अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।
🔴 फर्जी नियुक्ति पत्र बनाकर ठगी का खेल
पीड़ित अमित प्रताप सिंह (निवासी: ग्राम फुर्सत, थाना परसपुर) ने FIR में बताया कि आरोपी प्रकाश शर्मा और उसके साथियों ने खुद को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से जुड़ा हुआ बताते हुए ₹5,50,000 की ठगी की। बदले में उसे एक सरकारी इंटर कॉलेज में लिपिक पद पर नियुक्ति का फर्जी लेटर थमा दिया गया।
जब इस नियुक्ति पत्र को संबंधित विद्यालय के प्रधानाचार्य को दिखाया गया, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि कोई ऐसी वैकेंसी या चयन हुआ है।
💻 कॉल रिकॉर्डिंग और डिजिटल ट्रांजैक्शन हैं साक्ष्य
पूरा खेल तकनीकी माध्यमों से चलाया गया। आरोपी ने बार-बार ऑनलाइन पेमेंट मंगवाए। पीड़ित के पास की गई बातचीत की फोन रिकॉर्डिंग और ट्रांजैक्शन डिटेल्स मौजूद हैं, जो ठगी के पूरे प्लान को उजागर करती हैं।
सूत्रों के अनुसार, आरोपी अलग-अलग नामों और पदों से खुद को सरकारी अधिकारी बताकर लोगों को फंसा रहा था।
🏛️ IPC की गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमे
करनैलगंज व परसपुर थानों में आरोपियों के खिलाफ IPC की निम्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए हैं:
420: धोखाधड़ी
467: दस्तावेजों की कूटरचना
468: फर्जी दस्तावेज बनाना
471: फर्जी दस्तावेज का इस्तेमाल
506: धमकी देना
पीड़ितों का मानना है कि यह कोई मामूली धोखाधड़ी नहीं, बल्कि व्यापक और संगठित गिरोह का हिस्सा है।
👮♀️ पुलिस की जांच तेज, बड़े खुलासे की उम्मीद
पुलिस सूत्रों का कहना है कि जांच के दायरे में कई तकनीकी पहलू शामिल हैं — डिजिटल ट्रांजैक्शन, कॉल डेटा रिकॉर्ड, दस्तावेजों की फोरेंसिक जांच और अन्य पीड़ितों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं।
संभावना जताई जा रही है कि यह नेटवर्क गोंडा से आगे राज्य के अन्य जिलों तक फैला हुआ हो सकता है।
📉 चयन बोर्ड की साख पर सवाल
इस घटना ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की साख को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
अब सवाल उठ रहे हैं कि ऐसी फर्जी नियुक्तियों के गिरोह लंबे समय तक कैसे सक्रिय रहे? क्या इसमें अंदरूनी मिलीभगत की भी जांच होनी चाहिए?
🟡 अब ज़रूरत है सख्त कार्रवाई और जन-जागरूकता की, ताकि भविष्य में कोई और बेरोजगार युवा ऐसे शातिर ठगों का शिकार न बने।