गोरक्षपीठ: गुरु-शिष्य परंपरा की जीवंत मिसाल, योगी आदित्यनाथ निभा रहे हैं अपने ब्रह्मलीन गुरु का संकल्प
गुरुपूर्णिमा पर विशेष: गोरक्षपीठ में तीन पीढ़ियों से जीवित है आदर्श गुरु-शिष्य परंपरा, योगी आदित्यनाथ के जीवन में गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का अनुकरणीय प्रभाव

लखनऊ/गोरखपुर | भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य के रिश्ते को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस रिश्ते की परंपरा केवल शिक्षा तक सीमित न रहकर चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक उन्नति और समाज सेवा की प्रेरणा बन चुकी है। इसी परंपरा की सर्वोत्तम मिसाल है गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ, जिसकी तीन पीढ़ियों ने इस रिश्ते को जीवंत और आदर्श स्वरूप प्रदान किया है।
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और शिष्य योगी आदित्यनाथ का अनुकरणीय संबंध
गोरक्षपीठ के पूर्व पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के बीच का संबंध गुरु-शिष्य की परंपरा का अत्यंत मार्मिक उदाहरण है। बड़े महाराज ने योगी जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और योगी आदित्यनाथ ने भी अपने जीवन में अपने गुरु के आदेश को ‘वीटो पॉवर’ की तरह माना।
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी आदित्यनाथ जब भी गोरखनाथ मंदिर जाते हैं, सबसे पहले अपने गुरु की समाधि पर शीश नवाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। यह सिलसिला तब से चला आ रहा है जब वे स्वयं मठ में रहते थे।
गुरु की जलायी लोककल्याण की लौ को और प्रज्वलित कर रहे हैं योगी
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने जो लोककल्याण का दीप जलाया था, योगी आदित्यनाथ उसी दीप को एक व्यापक फलक पर मुख्यमंत्री के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। वे गोरक्षपीठ की परंपरा के अनुसार समाज सेवा, सामाजिक समरसता और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
गुरु पूर्णिमा पर दिखती है श्रद्धा और परंपरा की पराकाष्ठा
गोरखनाथ मंदिर में हर साल गुरु पूर्णिमा और साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह के दौरान गुरु परंपरा को भव्य रूप से याद किया जाता है। इस दौरान संतों, विद्वानों और श्रद्धालुओं द्वारा गुरुजनों के कृतित्व और समाज के प्रति योगदान पर चर्चाएं की जाती हैं। यह आयोजन गुरुओं को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ उनके अधूरे कार्यों को पूर्ण करने का संकल्प भी होता है।
खिचड़ी मेला और विजयादशमी जैसे आयोजनों में झलकता है जनसमर्पण
गोरक्षपीठ के प्रति लोगों की श्रद्धा सिर्फ गुरु पूर्णिमा तक सीमित नहीं है। मकर संक्रांति से शुरू होने वाला खिचड़ी मेला, विजयादशमी की शोभायात्रा, होली के जुलूस, और अन्य पर्वों पर आयोजित आयोजन इस बात का प्रमाण हैं कि गोरक्षपीठ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि पूर्वांचल की सामाजिक चेतना और श्रद्धा का केंद्र है।
शिष्य बनाने की परंपरा नहीं, फिर भी करोड़ों की श्रद्धा
गोरक्षपीठ की परंपरा लोगों को औपचारिक शिष्य बनाने की नहीं रही है, फिर भी उत्तर भारत ही नहीं, नेपाल और बिहार तक करोड़ों लोग अपने को इस पीठ से जुड़ा हुआ मानते हैं। यह श्रद्धा स्वाभाविक है, और गोरखपुर की यह पीठ पूर्वांचल की अध्यक्षीय पीठ मानी जाती है, जिसका निर्णय लोकमान्य होता है।
गुरु पूर्णिमा 2025: आयोजन विवरण
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📖 4 जुलाई से साप्ताहिक श्रीराम कथा की शुरुआत — प्रयागराज के आचार्य शांतनु जी महाराज करेंगे वाचन।
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समय: सुबह 9:00–11:30 बजे, दोपहर 3:00–6:00 बजे
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📅 मुख्य आयोजन: 10 जुलाई (गुरुवार)
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सुबह 5:00–6:00 बजे: महायोगी गुरु गोरखनाथ का रोट पूजन
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विशेष पूजन: सभी देव विग्रहों एवं समाधियों पर
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11:30–12:30 बजे: भजन एवं आशीर्वाद कार्यक्रम
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12:30 बजे से: सहभोज
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शाम 6:30 बजे: महाआरती एवं समापन
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निष्कर्ष:
गुरु-शिष्य का यह अनुपम संबंध गोरक्षपीठ में केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवंत सत्य के रूप में विद्यमान है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ के रिश्ते ने संस्कार, श्रद्धा और सेवा की त्रिवेणी को स्थापित किया है, जो न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा है।