नई दिल्ली: भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला, जो हाल ही में अपने 20-दिवसीय अंतरिक्ष मिशन के तहत 18 दिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में बिताकर लौटे हैं, उन्होंने शुक्रवार को एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने अनोखे अनुभव साझा किए।
उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में शून्य गुरुत्वाकर्षण (Zero Gravity) के कारण मस्तिष्क और शरीर की सोच व प्रतिक्रिया बदल जाती है। वापसी के बाद अब उन्हें फोन तक भारी लगता है, और जब उन्होंने गलती से लैपटॉप गिरा दिया, तो पहला विचार यही आया कि वह अब भी तैरता रहेगा।
🛰️ 20 दिन का मिशन, 18 दिन ISS पर
शुक्ला का मिशन कुल 20 दिनों का था, जिनमें से 18 दिन उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर बिताए।
👉 इस मिशन में उन्होंने कई प्रयोग, डेटा स्टडी और फिजिकल ट्रैकिंग एक्टिविटी की।
👉 उनका मिशन ISRO और NASA के सहयोग से संचालित हुआ।
🧠 माइंडसेट में बदलाव: “सब कुछ तैरता है”
“अंतरिक्ष में जब कोई वस्तु छोड़ते हैं तो वह हवा में तैरने लगती है। एक बार गलती से मैंने लैपटॉप को बिस्तर से नीचे गिरा दिया, तो दिमाग में पहला ख्याल आया कि यह तैरेगा… लेकिन वो ज़मीन पर गिर गया। तब एहसास हुआ कि अब मैं पृथ्वी पर वापस आ गया हूं।” – शुभांशु शुक्ला
उन्होंने कहा कि स्पेस से लौटने के बाद शरीर को दोबारा ग्रैविटी के लिए एडजस्ट करना पड़ता है।
📱 “फोन भी भारी लग रहा है”
शुक्ला ने मुस्कुराते हुए कहा,
“जब से वापस आया हूं, फोन हाथ में भारी लग रहा है। ग्रैविटी की आदत एकदम हट गई थी।”
उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में शरीर का वजन लगभग महसूस नहीं होता, और हाथ में फोन या लैपटॉप हो, सब हवा में फ्लोट करता है।
🇮🇳 अगस्त के दूसरे या तीसरे हफ्ते तक भारत लौटने की उम्मीद
सूत्रों के अनुसार, शुभांशु शुक्ला अभी भी मिशन डीकॉम्प्रेशन और मेडिकल मॉनिटरिंग के फेज में हैं और अगस्त के दूसरे या तीसरे हफ्ते तक भारत लौट सकते हैं।
उनकी वापसी के साथ ISRO और Gaganyaan मिशन से जुड़ी तैयारियों को और गति मिलने की उम्मीद है।
🔬 क्या किया इस मिशन में?
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माइक्रोग्रैविटी में मानव शरीर की प्रतिक्रिया पर प्रयोग
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अंतरिक्ष में खाने और नींद पर प्रभाव का अवलोकन
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कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीज़ पर डेटा रिकॉर्डिंग
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भारत की ओर से अंतरिक्ष अनुसंधान में नई दिशा
🇮🇳 भारत के लिए गौरव का क्षण
शुभांशु शुक्ला के इस मिशन ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान की वैश्विक अग्रणी कतार में एक कदम और आगे बढ़ाया है। वह आने वाले समय में गगनयान मिशन का हिस्सा भी बन सकते हैं।
✅ निष्कर्ष:
शुभांशु शुक्ला का यह मिशन न सिर्फ वैज्ञानिक रूप से बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी एक बड़ी उपलब्धि रहा है।
उनके अनुभवों से यह स्पष्ट है कि अंतरिक्ष मिशन केवल तकनीकी नहीं, बल्कि भावनात्मक और बौद्धिक चुनौती भी होती है। भारत को ऐसे वैज्ञानिकों पर गर्व है।