वक्फ कानून पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, केंद्र से पूछा- क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों को जगह देंगे?
सुप्रीम कोर्ट ने नए वक्फ संशोधन कानून पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन केंद्र सरकार से गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति पर जवाब मांगा।
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों को शामिल करने को भी तैयार है — जैसा कि नए वक्फ कानून में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में रखने का प्रावधान किया गया है?
क्या है मामला?
5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, वक्फ संशोधन कानून 8 अप्रैल से लागू हो गया है। इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक 100 से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
बुधवार को हुई दो घंटे लंबी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कानून की वैधता पर तत्काल रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन कुछ गंभीर टिप्पणियां कीं:
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वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड में अब हिंदू सदस्य भी होंगे, जो मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंंत्रता का उल्लंघन है।
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इस पर CJI संजीव खन्ना ने पूछा –
“जब हिंदू ट्रस्टों में गैर-हिंदू शामिल नहीं किए जा सकते, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम कैसे?”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन 1995 से अनिवार्य है।
ऐतिहासिक संपत्तियों पर सवाल
कोर्ट ने विशेष रूप से 14वीं और 16वीं सदी की मस्जिदों का जिक्र किया। बेंच ने कहा:
“अगर उन संपत्तियों के कोई ठोस दस्तावेज नहीं हैं, तो उन्हें वक्फ घोषित करना विवाद खड़ा कर सकता है।”
कानून की प्रमुख चुनौतियां:
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केवल मुस्लिम ही वक्फ बना सकते हैं:
– याचिकाकर्ताओं ने इसे भेदभावपूर्ण बताया। -
300 साल पुरानी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन:
– वक्फ डीड की मांग को अव्यवहारिक कहा गया। -
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना:
– संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन माना गया। -
विवाद की स्थिति में सरकारी जांच अधिकारी की भूमिका:
– इसे भी असंवैधानिक करार दिया गया।
आंदोलन और प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस मुद्दे पर “वक्फ बचाओ अभियान” शुरू किया है, जो 7 जुलाई तक चलेगा। इसका लक्ष्य है:
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1 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र करना।
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प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपना।
निष्कर्ष:
यह मामला न सिर्फ वक्फ संपत्तियों की कानूनी स्थिति से जुड़ा है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के संवैधानिक मूल्यों को लेकर भी अहम बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से स्पष्ट है कि यह सिर्फ एक कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संतुलन से जुड़ा गंभीर मुद्दा है।
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