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पहलगाम हमले के एक महीने बाद भी कश्मीर में टूरिज्म ठप: कारोबारी बोले- जंगलों में छोड़ दिए घोड़े-खच्चर, होटल-टैक्सी की EMI तक नहीं चुका पा रहे

श्रीनगर/पहलगाम: 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले को आज एक महीना बीत चुका है, लेकिन कश्मीर की हसीन वादियों में अब भी सन्नाटा पसरा है। आमतौर पर मई-जून में टूरिस्ट्स की भीड़ से गुलजार रहने वाला पहलगाम और आसपास के इलाकों में अब इक्का-दुक्का स्थानीय लोग ही नजर आते हैं।

टूरिज्म पूरी तरह से ठप हो चुका है। होटल खाली हैं, टैक्सियां खड़ी हैं, और घोड़े-खच्चर जंगलों में छोड़ दिए गए हैं। हमले के बाद घाटी में डर का माहौल है, जिससे हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी पर संकट आ गया है।


2024 का रिकॉर्ड टूटने की उम्मीद थी, पर हमले ने सब कुछ बदल दिया

स्थानीय होटल संचालक बशीर अहमद कहते हैं, “हमें उम्मीद थी कि 2025 में टूरिज्म का नया रिकॉर्ड बनेगा। अप्रैल की शुरुआत में अच्छी बुकिंग्स थी। लेकिन 22 अप्रैल को जो हमला हुआ, उसने सब कुछ बदल दिया। अब तो कोई पूछ भी नहीं रहा कि पहलगाम खुला है या बंद।”

वहीं टैक्सी ड्राइवर नासिर हुसैन बताते हैं, “हमारी EMI बाकी है। टैक्सी लिए 12% ब्याज पर लोन चल रहा है। पिछले एक महीने से गाड़ी एक बार भी नहीं चली। हम क्या करें?”


घोड़े-खच्चर जंगलों में छोड़े, क्योंकि चारा तक खरीदने के पैसे नहीं

पहलगाम और आसपास के इलाकों में हजारों परिवार घोड़े-खच्चर चलाकर टूरिस्टों को घुमाते हैं। अब टूरिस्ट नहीं आ रहे, तो उनके पास जानवरों का पेट भरने तक के पैसे नहीं हैं।

घोड़ा मालिक गुलाम रज़ा कहते हैं, “अब हम घोड़ों को जंगलों में छोड़ आए हैं। हर दिन 400-500 रुपये का चारा कहां से लाएं? कोई पर्यटक ही नहीं है। बच्चों के लिए दूध खरीदने के पैसे नहीं हैं, जानवरों को कैसे खिलाएं?”


सुरक्षा बढ़ी लेकिन सैलानी नहीं लौटे

हमले के बाद सरकार और प्रशासन ने सुरक्षा इंतजाम बढ़ा दिए हैं। ड्रोन निगरानी, अतिरिक्त फोर्स और चेकिंग प्वाइंट्स बनाए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद पर्यटक लौटने का नाम नहीं ले रहे।

पर्यटन विभाग का कहना है कि वह सुरक्षा और प्रचार दोनों मोर्चों पर काम कर रहा है, लेकिन भरोसे को फिर से कायम करने में वक्त लगेगा।


पर्यटन से जुड़ी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित

कश्मीर की आर्थिक रीढ़ टूरिज्म मानी जाती है। खासतौर पर पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग और श्रीनगर जैसे इलाकों में लाखों लोग टूरिज्म से सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। पहलगाम में ही करीब 6,000 से अधिक परिवार होटल, टैक्सी, घोड़े-खच्चर, गाइडिंग और रेस्टोरेंट जैसे व्यवसायों पर निर्भर हैं।

हमले के बाद से ये सभी व्यवसाय ठप हैं और लोग कर्ज़ में डूबते जा रहे हैं।


स्थानीय लोगों की गुहार- सरकार सहायता दे और भरोसा लौटाए

कारोबारियों और स्थानीय लोगों की मांग है कि सरकार को जल्द से जल्द कोई राहत पैकेज घोषित करना चाहिए और टूरिस्ट्स में भरोसा पैदा करने के लिए विशेष कैंपेन चलाना चाहिए।

स्थानीय होटल यूनियन के अध्यक्ष इमरान डार कहते हैं, “हमसे EMI तो बैंक मांग रहा है, लेकिन काम कुछ नहीं। सरकार को तुरंत होटल, टैक्सी और घोड़ा व्यवसायियों के लिए राहत योजना लानी चाहिए। वरना लोग खुदकुशी करने को मजबूर हो जाएंगे।”


निष्कर्ष:

22 अप्रैल को पहलगाम में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ सुरक्षा पर हमला नहीं था, बल्कि हजारों परिवारों की आर्थिक आज़ादी पर भी हमला था। एक महीना बीत चुका है, लेकिन घाटी अब भी खामोश और बेबस है। टूरिज्म की रफ्तार को फिर से शुरू करना अब सरकार, प्रशासन और समाज के साझा प्रयासों की सबसे बड़ी चुनौती है।

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