देवशयनी एकादशी: चातुर्मास की शुरुआत और लोक मंगल की पावन तिथि का धार्मिक, वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व
आज से भगवान विष्णु योगनिद्रा में; चार महीने तक नहीं होंगे शुभ संस्कार, पद्मनाभा व्रत से मिलता है मोक्ष

लखनऊ। आज देवशयनी एकादशी है, जिसे पद्मनाभा एकादशी भी कहा जाता है। यह तिथि सनातन परंपरा में लोकमंगल की प्रतीक मानी जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ होता है और भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं।
क्या है देवशयनी एकादशी?
देवशयनी एकादशी को हरिशयन एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक श्रीहरि विष्णु शयन करते हैं और यह अवधि चातुर्मास कहलाती है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु इस काल में पाताल लोक में राजा बलि के महल में निवास करते हैं। इसी कारण शुभ कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश आदि इस दौरान वर्जित माने गए हैं।
व्रत का महत्व और वैज्ञानिक आधार:
शास्त्रों के अनुसार, इस काल में व्रत, संयम और सत्संग से आत्मिक लाभ होता है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि वर्षा ऋतु में पाचनशक्ति कमजोर होती है और रोगों की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में उपवास और सात्विक भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
विष्णु का वामन रूप और बलि से संबंध:
पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पगों में सारा लोक ले लिया और तीसरे पग में बलि ने अपना सिर समर्पित कर दिया। प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे पाताल का अधिपति बनाया और वरदान दिया कि वे स्वयं उसके साथ रहेंगे। इस व्रत को करने से वही विष्णु कृपा प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा: राजा मांधाता और दुर्भिक्ष की समाप्ति
देवर्षि नारद के पूछने पर ब्रह्माजी ने एक कथा सुनाई—सत्ययुग में राजा मांधाता के राज्य में तीन साल तक वर्षा न होने से भयंकर अकाल पड़ा। ऋषि अंगिरा ने उन्हें देवशयनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। राजा ने पूरे राज्य के साथ मिलकर व्रत किया और फलस्वरूप मूसलधार वर्षा हुई और अन्न-जल की बहुलता से राज्य पुनः समृद्ध हो गया।
गौर करने योग्य तथ्य:
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व्रत का फल: पद्म पुराण के अनुसार, यह व्रत जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति देता है।
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सौभाग्य व्रत: विशेषकर महिलाओं के लिए यह व्रत मोक्ष व सौभाग्य देने वाला है।
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धार्मिक निषेध: चातुर्मास में 16 संस्कार, विवाह, यज्ञ, दीक्षा आदि कार्य वर्जित रहते हैं।
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तीन देवताओं का निवास:
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विष्णु: देवशयनी से देवउठनी तक सुतल लोक
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शिव: देवउठनी के बाद महाशिवरात्रि तक
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ब्रह्मा: शिवरात्रि से पुनः देवशयनी तक
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आध्यात्मिक भाव और समर्पण का पर्व
इस एकादशी को केवल व्रत या अनुष्ठान तक सीमित न रखते हुए, यह समझा जाना चाहिए कि गुरु-भक्ति, संयम, दान और सेवा के साथ लोककल्याण की भावना ही इसका मूल है।
निष्कर्ष:
देवशयनी एकादशी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में संयम, अनुशासन और भक्ति के साथ आत्मचिंतन करने का अवसर है। यह तिथि हमें न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती है।