पिता क्या हैं! कविता में भावनाओं की गहराई: दीपांजली शर्मा


लेखिका- दीपांजली शर्मा “दीपा”
पिता धरा की नींव महान,
संघर्षों का सजीव प्रमाण।
मौन रहें पर कर्म दिखाएँ,
हर बाधा से लड़ मुस्काएँ।
सपनों का वो पुल बनाते,
खुद गीले में सुख बिछाते।
सावन जैसे शीतल छाया,
हर दुख में भी साथ निभाया।
माँ ममता की सजीव धारा,
पिता तपस्या का उजियारा।
जीवन का हर पाठ पढ़ाते,
कर्तव्य , धर्म स्वयं निभाते।
माँ घर की जड़, पिता स्तम्भ,
घर को करते पूर्ण ,परिपूर्ण।
माँ सिखलाए ममता , नीति,
पिता निभाए नीति , गति रीति।
बिन कहे सब हाल समझते,
अपने हिस्से दुःख में बसते।
हौंसले की मिसाल पिता हैं ,
हर दिन का उजास पिता हैं ।
बेटी की जब डोली जाए,
मन रोए, पर आँख न भर आए।
बेटों में वो दीप जलाते,
सच के रस्ते खुद चलवाते।
पिता बिना अधूरा घर है,
जैसे दीप बिना अंधेर है।
उनकी छाया में सुख पाते,
पग-पग जीवन पथ बतलाते।
हे पिताश्री, चरण वंदन,
आपसे ही जीवन में धन।
जहाँ आप हों, वहाँ उजियारा,
घर का कोना-कोना प्यारा।
लेखिका- दीपांजली शर्मा “दीपा”
बीसोखोर कटहरी बाज़ार
जनपद – महराजगंज