
नई दिल्ली, 20 फरवरी: बतौर चौथी महिला मुख्यमंत्री, रेखा गुप्ता के सामने न केवल अपनी सरकार को प्रभावी ढंग से चलाने की चुनौती है, बल्कि उन्हें अपनी पूर्ववर्ती शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और आतिशी की कार्यशैली से आगे निकलकर एक नई पहचान भी बनानी होगी। खासकर, 15 साल तक दिल्ली की सूरत बदलने वाली शीला दीक्षित के कामकाज से उनकी तुलना होना तय है। वहीं, उन्हें यह भी साबित करना होगा कि वे उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ तालमेल तो रखेंगी, लेकिन कठपुतली मुख्यमंत्री नहीं बनेंगी।
विपक्ष के हमलों से कैसे निपटेंगी रेखा गुप्ता?
मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता को आम आदमी पार्टी के आक्रामक विरोध का सामना करना पड़ेगा। विधानसभा में 22 विधायकों और 43% वोट शेयर के साथ ‘आप’ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने से पीछे नहीं हटेगी। हालांकि, कांग्रेस फिलहाल कमजोर स्थिति में है, लेकिन वह भी हमले करने में पीछे नहीं रहेगी।
पार्टी के अंदर भी रहेगी चुनौती
सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक चुनौतियां भी रेखा गुप्ता के लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं। पार्टी के अंदर वे नेता जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, उनके भीतरघात से निपटना भी उनके लिए अहम चुनौती होगा। हालांकि, मौजूदा भाजपा नेतृत्व में भीतरघात की संभावनाएं कम हैं, लेकिन मुख्यमंत्री को सतर्क रहना होगा कि कहीं उनके ही लोग उनकी राह में रोड़े न अटकाएं।
प्रशासनिक नियंत्रण और राजधानी की सियासत
दिल्ली की नौकरशाही पर प्रभावी नियंत्रण और उसे जनोन्मुखी बनाना भी उनकी बड़ी परीक्षा होगी। साथ ही, राजधानी के सभी वर्गों, समुदायों और क्षेत्रों में संतुलित विकास सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकता होगी। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है और केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में आती है, इसलिए रेखा गुप्ता के हर फैसले पर देश की मीडिया और सत्ता प्रतिष्ठान की पैनी नजर रहेगी। उन्हें हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा ताकि उनकी सरकार मजबूत और प्रभावशाली बनी रहे।
अब देखने वाली बात होगी कि क्या रेखा गुप्ता इन सभी चुनौतियों की लकीरें पार कर दिल्ली की राजनीति में अपनी बड़ी पहचान बना पाती हैं या नहीं।