उत्तर प्रदेश

रामजीलाल सुमन पुलिस पर भड़के, नोटिस फेंका:बोले- मुझे पता है ये किसके इशारे पर हो रहा, आगरा पुलिस ने फिर किया हाउस अरेस्ट

सपा सांसद ने पुलिस पर लगाया पक्षपात का आरोप, बोले- मुझे पता है यह किसके इशारे पर हो रहा है

आगरा : से समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन एक बार फिर पुलिस कार्रवाई को लेकर विवादों में आ गए। मंगलवार को जब पुलिस ने उन्हें हाउस अरेस्ट करने के उद्देश्य से नोटिस थमाया, तो सांसद ने गुस्से में वह नोटिस फाड़कर फेंक दिया। उन्होंने पुलिस पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा कि हर बार उन्हें ही क्यों रोका जाता है, जबकि असली अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं।


“मुझे पता है ये किसके इशारे पर हो रहा है”

गुस्साए सपा सांसद ने मीडिया से बात करते हुए कहा:

“अब यह शॉर्टकट नहीं चलेगा। हर बार मुझे ही घर में नजरबंद कर देते हैं। पुलिस अपराधियों को दो घंटे में छोड़ देती है, लेकिन मुझे हर बार रोकती है। मुझे पता है ये कार्रवाई किसके इशारे पर हो रही है। मैं अब चुप नहीं बैठूंगा। कासगंज जरूर जाऊंगा और हर हाल में आवाज उठाऊंगा।”

रामजीलाल सुमन की यह प्रतिक्रिया तब आई जब पुलिस ने उन्हें संभावित कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका जताते हुए कासगंज दौरे से पहले नजरबंद किया


पुलिस की सफाई

आगरा पुलिस ने अपनी कार्रवाई को उचित ठहराते हुए कहा कि:

“सांसद को एहतियातन नोटिस दिया गया था क्योंकि उनकी यात्रा से कानून व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। इससे पहले भी कुछ ऐसे मौके आए हैं जब टकराव की स्थिति बनी थी। इसलिए पहले से ही यह कदम उठाया गया है।”

हालांकि पुलिस के इस बयान से सपा कार्यकर्ता और समर्थक सहमत नहीं दिखे और उन्होंने प्रशासनिक कार्रवाई को जनप्रतिनिधि की आवाज दबाने की कोशिश बताया।


राजनीतिक पारा चढ़ा

रामजीलाल सुमन के इस बयान और पुलिस कार्रवाई के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी ने इसे लोकतंत्र का हनन बताया है और विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है। वहीं, भाजपा की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है।


पृष्ठभूमि

रामजीलाल सुमन पहले भी अपने बयानों और पुलिस कार्रवाई को लेकर चर्चा में रह चुके हैं। इससे पहले भी उन्हें कई बार हाउस अरेस्ट किया जा चुका है, खासकर तब जब वे किसी संवेदनशील क्षेत्र का दौरा करने जा रहे होते हैं।


निष्कर्ष

इस घटनाक्रम ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक बार फिर गर्मा दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि की आवाज को बार-बार इसी तरह दबाया जाना सही है, या फिर यह सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने का तरीका है? जवाब आने वाले समय में राजनीतिक प्रतिक्रियाओं से मिलेगा।

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