उत्तर प्रदेश

पंडित बिरजू महाराज राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ से विशेष बातचीत; कला, साधना और सामाजिक सरोकारों का अनुपम समागम

नोएडा | “कथक केवल नृत्य नहीं, यह ब्रह्मांड की गति है; ऊर्जा की उस धारा का नाम है जो मंच पर उतरकर सृजन को सजीव कर देती है।”
यह शब्द हैं प्रख्यात कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ के, जिनकी कला, साधना और समर्पण ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय नृत्य जगत में एक अलग पहचान दिलाई है। माया जी की प्रस्तुति केवल भाव नहीं, बल्कि आराधना बन जाती है, जिसमें वह स्वयं को खोकर सृजन के साथ तादात्म्य स्थापित करती हैं।


बचपन से सृजन की दिशा में

माया कुलश्रेष्ठ ने मात्र 3 वर्ष की उम्र में नृत्य की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। उनके माता-पिता ने यह विश्वास किया कि भारतीय कला उनके जीवन को ऊर्जावान बनाएगी। पहली प्रस्तुति उन्होंने 7-8 वर्ष की आयु में दी, जिसे वह आज भी अविस्मरणीय मानती हैं।


शिक्षा और साधना

  • कथक में B.Voc. खैरागढ़ यूनिवर्सिटी से
  • M.A. राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यालय से
  • विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन व रिसर्च प्रकाशित
  • नृत्य के साथ-साथ साहित्य में भी सक्रिय

उन्होंने पुणे की डॉ. अंजली बाबर से अपनी आरंभिक शिक्षा ली और दिल्ली के कलाश्रम में प्रशिक्षण प्राप्त किया। कई प्रमुख गुरुओं से मार्गदर्शन प्राप्त करने को वह अपना सौभाग्य मानती हैं।


“शो मस्ट गो ऑन” की भावना

मंच पर कभी परफेक्ट प्रस्तुति नहीं होती — यह माया कुलश्रेष्ठ का स्पष्ट विश्वास है।

“हमें हर शो में अपना 100% देना होता है, क्योंकि यह लाइव आर्ट है। रीटेक का विकल्प नहीं होता।”

उनका मानना है कि जब तक वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण को अपनी आत्मा में अनुभव नहीं करतीं, तब तक वह दर्शकों तक रस निष्पत्ति नहीं पहुंचा सकतीं।


अंजना वेलफेयर सोसायटी की प्रेरणा

नोएडा स्थित “अंजना वेलफेयर सोसायटी” की स्थापना माया जी ने उन वर्गों के लिए की जो शिक्षा, कला और मंच से वंचित हैं। संस्था द्वारा अनेक शहरों में कला महोत्सव का आयोजन किया जाता है।


‘सुरताल’: एक समर्पित सांस्कृतिक मंच

माया जी द्वारा संचालित मंच ‘सुरताल’ पिछले 14 वर्षों से युवा कलाकारों और गुरुजनों को एक मंच पर लाकर भारतीय सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा रहा है।


युवाओं से जुड़े रहने का संदेश

माया कुलश्रेष्ठ मानती हैं कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। नई पीढ़ी शास्त्रीय परंपरा से जुड़ रही है — यह भारत के सांस्कृतिक भविष्य के लिए शुभ संकेत है।


मंच की ऊर्जा और सात्विक जीवन

“ऊर्जा का स्रोत है मेरा सात्विक जीवन और नियमित अभ्यास। मंचीय कला केवल बाहरी सजावट नहीं है, यह आंतरिक साधना की मांग करती है।”

वे कहती हैं कि मंच पर केवल ‘अच्छा दिखना’ नहीं, भीतर से ऊर्जा से भरा होना अनिवार्य है।


निष्कर्ष:

माया कुलश्रेष्ठ केवल कथक नृत्यांगना नहीं, वह एक सांस्कृतिक प्रेरणा हैं। उनका जीवन, साधना, और सेवा भारतीय कला के समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है। पंडित बिरजू महाराज राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होकर उन्होंने अपने जीवन को कला, सेवा और समाज के त्रिवेणी संगम में बदल दिया है।

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