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रिटायर्ड सिपाही बी.सी. श्रीवास्तव को 1980 के दशक में मिला था आश्वासन, 2025 में भी जमीन की रजिस्ट्री अधर में; इंस्पेक्टर को 15 साल से नहीं मिला कब्जा

40 साल से प्लॉट के लिए लड़ रहा सिपाही, लखनऊ की LDA अदालत में फिर मिला केवल आश्वासन

लखनऊ: “थक गई हैं आंखें, पर उम्मीद अभी बाकी है” — ये शब्द रिटायर्ड सिपाही बी.सी. श्रीवास्तव के हैं, जो पिछले 40 वर्षों से अपने प्लॉट की रजिस्ट्री के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) के चक्कर लगा रहे हैं। गुरुवार को जनता अदालत में एक बार फिर वे अपनी फरियाद लेकर पहुंचे, पर उन्हें इस बार भी सिर्फ आश्वासन मिला।


👮‍♂️ 1980 के दशक में मिली थी प्लॉट की उम्मीद, आज भी रजिस्ट्री नहीं

बीसी श्रीवास्तव को 1980 के दशक में LDA की एक योजना के तहत एक प्लॉट आवंटित किया गया था। वर्षों तक उन्होंने किस्तें चुकाई, आवश्यक कागजात जमा किए, और अधिकारियों के सभी नियमों का पालन किया, लेकिन आज 2025 में भी उनके नाम रजिस्ट्री नहीं हो सकी


🏢 जनता अदालत में दर्द बयां किया, पर हल नहीं निकला

जनता अदालत में श्रीवास्तव की आंखों में थकान और निराशा साफ नजर आ रही थी। उन्होंने अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई, फाइलों के ढेर में उनका केस बार-बार खो गया।

“हर बार नया अधिकारी, हर बार नई तारीख… लेकिन प्लॉट आज भी सपना ही है,” – बीसी श्रीवास्तव।


🕵️‍♂️ 15 साल से इंस्पेक्टर का प्लॉट भी अधर में

जनता अदालत में एक अन्य फरियादी, लखनऊ के एक रिटायर्ड इंस्पेक्टर, ने बताया कि उन्हें 2009 में प्लॉट अलॉट किया गया था, लेकिन आज तक न रजिस्ट्री हुई न कब्जा मिला। वह भी लगातार RTI से लेकर शिकायत पोर्टल तक गुहार लगा चुके हैं।


🔍 क्या कहता है LDA?

जनता अदालत में मौजूद अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि सभी लंबित मामलों की फाइलों की स्क्रूटनी की जाएगी और विकास प्राधिकरण के चेयरमैन के निर्देश पर जल्द कार्यवाही की जाएगी।
हालांकि, फरियादियों का कहना है कि ये आश्वासन उन्हें हर साल मिलते हैं, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकलता।


📉 सिस्टम की निष्क्रियता पर उठे सवाल

40 साल से लटक रहे ऐसे मामलों ने प्रशासनिक सुस्ती और जवाबदेही की कमी को उजागर किया है। जहां एक तरफ हाउसिंग योजनाओं के नाम पर करोड़ों की योजनाएं चल रही हैं, वहीं दूसरी तरफ वर्षों से भुगतान कर चुके लोगों को प्लॉट का अधिकार नहीं मिल पा रहा।


📣 सोशल मीडिया पर भी उठी आवाज

बीसी श्रीवास्तव की पीड़ा सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है। यूजर्स ने सवाल उठाए हैं कि

“जब एक पूर्व सिपाही और इंस्पेक्टर को न्याय नहीं मिल रहा, तो आम आदमी की क्या बिसात?”


📌 निष्कर्ष:
LDA की जनता अदालत भले ही आम नागरिकों के लिए समाधान का मंच बनी हो, लेकिन लंबे समय से लंबित प्लॉट मामलों में केवल आश्वासन ही नजर आता है। बीसी श्रीवास्तव जैसे लोगों के संघर्ष से यह साफ है कि अब सिर्फ जवाब नहीं, ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि न्याय और भरोसा दोनों बचा रहे।

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