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लखनऊ हाईकोर्ट में महिला अधिवक्ता ने खाईं पैरासिटामोल की 5 गोलियां, तनाव का था कारण

वकालतनामा दाखिल करने के बाद कोर्ट परिसर में ही दवाइयों का सेवन, पारिवारिक विवाद से थीं मानसिक तनाव में

लखनऊ। हाईकोर्ट लखनऊ खंडपीठ परिसर में गुरुवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई जब एक महिला अधिवक्ता ने वकालतनामा दाखिल करने के तुरंत बाद पांच पैरासिटामोल गोलियां खा लीं। घटना के बाद कोर्ट परिसर में मौजूद अन्य अधिवक्ताओं ने तुरंत पुलिस और चिकित्सा टीम को सूचित किया। महिला को तत्काल सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत अब स्थिर बताई जा रही है।


🔹 कोर्ट में दाखिल किया वकालतनामा, फिर खाईं दवाइयां

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, महिला अधिवक्ता किसी केस से संबंधित वकालतनामा दाखिल करने आई थीं। कागजात जमा करने के तुरंत बाद उन्होंने अपने बैग से दवाइयों की स्ट्रिप निकाली और पांच टैबलेट निगल लीं। कुछ ही देर में उनकी हालत बिगड़ने लगी, जिसके बाद मौके पर मौजूद लोगों ने सहायता की।


🔹 पारिवारिक विवाद से थीं मानसिक तनाव में

पुलिस और अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, महिला अधिवक्ता पिछले कुछ महीनों से गंभीर पारिवारिक तनाव से जूझ रही थीं। बताया जा रहा है कि घरेलू झगड़ों और व्यक्तिगत समस्याओं ने उन्हें मानसिक रूप से काफी प्रभावित किया था। पुलिस ने प्राथमिक पूछताछ के बाद पारिवारिक पहलुओं की भी जांच शुरू कर दी है।


🔹 अस्पताल में भर्ती, स्थिति स्थिर

महिला अधिवक्ता को तत्काल सिविल अस्पताल लखनऊ में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने पैरासिटामोल ओवरडोज की पुष्टि की है। डॉक्टरों के अनुसार, अगर समय रहते इलाज शुरू न किया गया होता, तो स्थिति गंभीर हो सकती थी। फिलहाल महिला की हालत स्थिर है और निगरानी में रखा गया है।


🔹 कोर्ट परिसर में सुरक्षा बढ़ी

घटना के बाद हाईकोर्ट परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठे हैं। हालांकि, अधिवक्ताओं का कहना है कि यह मामला व्यक्तिगत मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है, और इससे कोर्ट प्रशासन की व्यवस्था को जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। फिर भी, कोर्ट प्रशासन ने घटनास्थल की पूरी रिपोर्ट तलब की है।


🔚 निष्कर्ष

यह घटना मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को फिर से चर्चा में ले आई है, खासकर वकीलों और कानूनी पेशे से जुड़े लोगों के बीच। लंबी केस सुनवाई, पारिवारिक जिम्मेदारियां और व्यक्तिगत दबाव अक्सर मानसिक तनाव का कारण बनते हैं। इस मामले में महिला अधिवक्ता की जान तो बचा ली गई, लेकिन यह समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि मानसिक स्वास्थ्य को अब प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

News Desk

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