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स्मृति शेष: प्रमिला ताई मेढे — मातृशक्ति का तपस्वी स्वरूप

वंदनीय प्रमिला ताई मेढे जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। उनका जीवन हम सबके लिए दीपस्तंभ बना रहेगा।

डॉ अर्चना तिवारी

स्त्री: ही राष्ट्रनिर्माण की आधारशिला है। इसी ध्येयवाक्य के साथ देश मे लगभग 90 वर्षों से कार्यरत राष्ट्रसेविका समिति भी ठीक उसी प्रकार से भारत की स्त्रियों के विकास में जुटी है। श्रद्धेय प्रमिला ताई जी इस संगठन की चतुर्थ मूल स्तंभ थीं।

जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व्यक्ति निर्माण कर राष्ट्र की सेवा कर रहा है। राष्ट्र सेविका समिति का कार्यक्षेत्र दिनोदिन विस्तृत हो रहा है । समाज के विभिन्न वर्गों की स्त्रियों के लिए यह एक ऐसा मंच बन चुका है जो अपनी सकारात्मकता और रचनाशीलता से राष्ट्र को नई दिशा देने में लगा है। राष्ट्र सेविका समिति के कार्यक्रमो और उसकी योजनाओं का सीधा लाभ भारत की स्त्रियों को मिलना शुरू हो गया है।

राष्ट्र सेविका समिति की चतुर्थ प्रमुख संचालिका वंदनीय प्रमिला ताईजी मेढे का महाप्रयाण भारत की मातृशक्ति के सक्षम नेतृत्व और वर्तमान की एक अपूर्णनीय क्षति है।

गुरुवार, 31 जुलाई को प्रातः 9.05 मिनट पर नागपुर में देवी अहिल्या मंदिर में वृद्धावस्था के कारण ताई जी ने अंतिम सांस ली । टाई जी का 97 वर्ष का संपूर्ण जीवन राष्ट्र भक्ति, मातृशक्ति की तपस्विता, सक्रियता, जागरूकता, तत्परता, धर्माभिमान एवं राष्ट्रनिष्ठा का जीता जागता ऐसा अनूठा उदाहरण है जिससे भारत की भावी पीढ़ी को सदैव सीखने को मिलता रहेगा।

पूज्य प्रमिला ताई जी के जीवन और उनके कार्यों को कुछ शब्दों में समेटना संभव ही नहीं है। अत्यंत विषम परिस्थितियों में निरंतर एक साधक के रूप में अंतिम सांस तक वह राष्ट्र की मातृशक्ति के लिए संकल्प और साहस पूर्वक कार्य करती रही हैं। राष्ट्र सेविका समिति की केंद्र कार्यालय प्रमुख, अखिल भारतीय प्रमुख कार्यवाहिका, समिति की ओर से विश्व विभाग प्रमुख, सह प्रमुख संचालिका (2003 – 2006) वंदनीय प्रमुख संचालिका (2006 से 2012) जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्व प्रमिला ताई जी ने संभाले। पूरे भारत में तो उन्होंने कार्य किया ही, अन्य देशों जैसे श्रीलंका, केनिया, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका आदि देशों में उन्होंने बहुत गंभीर कार्य करते हुए प्रवास किया।

अमेरिका प्रवास में न्यू जर्सी के मानद नागरिकत्व से भी उन्हें सम्मानित किया गया था। 2020 में एस एन डी टी विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डिलीट पदवी प्रदान की गई थी।

यह भी उल्लेखनीय है कि वंदनीय मौसीजी की जन्मशताब्दी वर्ष के निमित्त (2003 – 2004) मौसीजी की चित्र प्रदर्शनी लेकर पूरे भारतवर्ष में तथा नेपाल सहित 108 स्थानों पर लगभग 28,000 किलोमीटर का पूरा प्रवास उन्होंने कार से किया था। तब उनकी आयु 75 वर्ष हो चुकी थी। नौ गज की साड़ी पहनी हुई साक्षात मां भारती की प्रतिमूर्ति के रूप में ताई जी देश – विदेश में जब अंग्रेजी भाषा में प्रभुत्व से बात करती, भाषण देती तो लोग आश्चर्यचकित हो जाते।

केनिया में सेविकाओं के लिए जो कार्यालय बना । उस “सरस्वती सदन” का उद्घाटन वंदनीय ताईजी आपटे के जन्मशताब्दी वर्ष में उनके हाथों हुआ था। सेवा इंटरनेशनल के केनिया के कार्यक्रम में उनका भाषण मन को बहुत छूनेवाला था। “वयं विश्वशान्त्यै चिरं यत्नशीलाः” नामक पुस्तक में उन्होंने अपने विश्व विभाग प्रवास के अनुभव लिखे है। अभी तक विदेश से आए हुए कार्यकर्ता उनको मिलने के लिए नागपुर आते रहते थे। किसी भी आयु की व्यक्ति के साथ उनकी मानसिकता मिलती ही थी। मुख्य रूप से युवा बहनों के साथ वह बहुत सम भाव से अपने भाव और उद्देश्य प्रेषित करती थीं।

संगठन में दक्ष , आज्ञा का सही अर्थ समझना है तो प्रमिला ताई जी के त्याग और तपस्वी जीवन को ठीक से देखना होगा। अपनी वेशभूषा, संवाद, लेखन, पठन, प्रतिक्रिया देना, भाषण देना, बैठक लेना, उठना – बैठना आदि सभी में सदैव दक्ष थी। पिछले सप्ताह कारगिल विजय दिवस पर सोशल मीडिया में जो पोस्ट बनी उसमें सलाम शब्द लिखा था। उसे पढ़कर सोशल मीडिया के ग्रुप में प्रमिला ताईजी का संदेश आया, सलाम के स्थान पर नमन लिखना चाहिए। स्वयं को मानसिक और व्यावहारिक रूप से अद्यतन रहने का आदर्श प्रमिला ताईजी सिखाती थीं। नागपुर ही नहीं , महाराष्ट्र, संपूर्ण भारत , विदेश सहित सभी स्थानों की ताज़ा खबरें उन्हें ज्ञात होती थी।

कहीं अन्याय हुआ, कहीं गलत दिखाई दिया या कुछ अच्छा हुआ तो तुरंत उनका फोन उस व्यक्ति को, लेखक को, संपादक को या राजनेता को जाता ही था। सोशल मीडिया पर शीघ्र उत्तर देना हो, पत्र का तुरंत उत्तर देना यह काम वह तत्परता से करती थीं। कभी तो स्टेटस देखकर भी कुछ संवाद करती थीं। उनके मस्तिष्क के सारे विंदु हमेशा सतर्क भाव में ही रहते थे। इसलिए पिछले सप्ताह में हुई अखिल भारतीय बैठक में (बोलने की शक्ति न रहते हुए भी) उन्होंने ऑनलाइन आते हुए सभी सेविकाओं को सतर्क रहने का आशीर्वाद दिया था ।

उनके सर्वे भवन्तु सुखिनः, शुभाशिर्वाद, काम करते रहना, गलती न करना ऐसे सारे शब्द बैठक में उपस्थित सभी को अविरत चलने की प्रेरणा देकर गए, सहला गए।

उनके बौद्घिक उद्बोधन में मार्मिकता, गम्भीरता, गहराई, शब्दसंपदा,गागर में सागर, उदाहरण, श्लोक ऐसा सब कुछ उसमें होता था । अनेक बार ताईजी इतनी सहजता से और मेधावी विनोद करती की वो समझने के लिए भी अपनी एकाग्रता हो तो ही समझ में आता था। उन्होंने अपने जीवन में सैंकड़ों पुस्तकें पढ़ीं। परीक्षण किया। अपने भाषणों में उदाहरण दिए। उनकी स्मरण शक्ति भी बड़ी तेज थी।उन्हें संस्कृत भाषा पर भी प्रभुत्व था।

अनेक श्लोक कंठस्थ थे। बहुत ठंड हो, भारी वर्षा हो या गर्मी हो, उन्होंने काम करना कभी नहीं रोका। कुछ दिनों पूर्व तक प्रातः साढ़े पांच बजे स्नान करके तैयार होकर वे प्रातः स्मरण के लिए कार्यालय के सभागार में उपस्थित रहती थी। प्रातःस्मरण, सायं स्मरण, प्रार्थना, स्तोत्र में अगर अशुद्ध उच्चारण किया तो वे तुरंत रोकती और उसे सही करती। किसी सूचना पत्रक में, पत्र में, लेख में, पुस्तक में शुद्धलेखन करना है तो प्रमिला ताईजी को दिखाते थे। अतीव सूक्ष्म बातें उनके ध्यान में आती, और वो उसे ठीक करती थी।

व्यवस्थितता उनके जीवन का एक अभिन्न गुण था। साड़ी पहनना, कपड़े बिना सल के सुखाना, कपड़े तय करना, डायरी में लिखना, अटैची जमाना, भोजन की थाली साफ करना, संपर्क में जाते समय तैयारी सब कुछ बहुत व्यवस्थित था! स्वच्छता भी उन्हें प्रिय थी। कार्यालय में जहां भी बैठती, वहां के स्वच्छता का ध्यान रखती। प्रमुख संचालिका के दायित्व से मुक्त होने के बाद भी उनका प्रवास, पढ़ना, तुरंत प्रतिक्रिया देना, सुख दुःख में मिलने जाना बंद नहीं हुआ। उनका देश के विभिन्न क्षेत्र के अनेक महानुभावों के साथ अच्छा सम्पर्क था।

उनकी कुशाग्र बुद्धिमत्ता एवं अध्ययन का अनेक विद्वानों पर आज प्रभाव दिखाई देता है। महिला जगत का गहरा विचार ताई जी करती थी एवं कृति भी! आज जिस विमर्श की बात हम करते है, उसके बारे प्रमिलाताई जी का चिंतन बहुत व्यापक था। अच्छे पद की नौकरी छोड़कर, समयपूर्व स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेकर पूरा जीवन समाज कार्य के लिए देने का निर्णय लेकर प्रमिला ताईजी ने गृहस्थ कार्यकर्ता और प्रचारक जीवन के लिए बड़ा आदर्श प्रस्थापित किया है।

समयपालन, अनुशासन में उन्होंने कभी समझौता नहीं किया और अगर किसी ने ऐसा किया तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।

उनको अनेक गीत कंठस्थ थे। कार्यक्रम में गीत कंठस्थ ही गाने का उनका आग्रह था। जिस प्रांत में प्रवास में जाती थीं, उस भाषा के कुछ शब्द, वाक्य , गीत की पंक्तियां वो जरूर बोलती। प्रशिक्षण वर्गों में जब उनका प्रवास होता था तो शाखा में शारीरिक करते समय सेविकाओं की दृष्टि, पूरी शक्ति से प्रहार मारना, सम्यक् इन बातों पर उनका विशेष ध्यान रहता था। इतनी बड़ी आयु में रास्ते में चढ़ाव हो या ढलान हो किसी का हाथ पकड़े बिना वो चढ़ती और उतरती थी।

प्रवास से आए कार्यकताओं से हमेशा पूछना कि कहां से आए हो? नया क्या पढ़ा? नया क्या लिखा? कुछ विशेष अनुभव आया तो संदेश सोशल मीडिया के माध्यम से भेजने का उनका निर्देश बहुत आत्मीय भाव के साथ होता था ।
ऐसी पूज्य राष्ट्र प्रतिमा ताई जी के लिए यह उक्ति उचित प्रतीत होती है:

“चले निरंतर चिंतन मंथन,
चले निरंतर अथक प्रयास,
भारत मां की सेवा में हो,
अपने जीवन का हर श्वास,
मन में परम विजय विश्वास!”

ऐसी परम श्रद्धेय प्रमिला ताई जी को उनके महाप्रयाण पर विनम्र श्रद्धांजलि ।।

( लेखिका प्रख्यात शिक्षाविद और राष्ट्र सेविका समिति से सम्बद्ध हैं।)

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