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Lok Sabha Elections 2024: राजनीति से बहिष्कृत होती नैतिकता

नरेन्द्र भदौरिया

Lok Sabha Elections 2024: भारत की पहचान आदर्श मानव मूल्यों और नैतिकता को माना जाता है। हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति के विचार सागर में इन दो गुणों की सदा से प्राबल्यता रही है। भारत में सबसे बड़ा स्वातन्त्र्य संग्राम 1857 से 1947 तक 90 वर्षों तक चला। इससे भी बड़ा एक संग्राम मर्यादा पुरुषोत्तम नैतिक मूल्यों के आदर्श पुरुष श्रीराम के जन्मभूमि के लिए हुआ। जो 1528 से चलते हुए 22 जनवरी, 2024 को पूर्ण हुआ। जब अयोध्या में श्रीराम का भव्य मन्दिर बनकर तैयार हुआ। इस तरह यह महासंग्राम 496 वर्षों तक चला।

हिन्दू समाज ने अपने आदर्श नायक भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के दावे को कभी नहीं छोड़ा। इसके लिए पीढ़ी दर पीढ़ी साढे सात लाख से अधिक रामभक्तों ने अपना बलिदान दिया। मुगलों से लेकर अंग्रेजों के पूरे कालखण्ड तक चले इस आन्दोलन को दुनिया ने भले ही भुला दिया, पर भक्तों ने कभी हार नहीं मानी। सत्ता में बैठे अनेक लोगों ने श्रीराम भक्तों का उपहास किया। उनपर भौडे तंज कसे। पर भक्तों की नैतिकता का बॉध कभी टूटा नहीं।

भारत के स्वातन्त्र्य संग्राम में क्रान्तिवीरों का योगदान अप्रतिम रहा है। हजारों माताओं ने कोख पर पत्थर रखकर बेटों और बेटियों को भारत माता की चरणों में अर्पित कर दिया। ललनाओं के हाथों की राखी के बन्धन मातृभूमि की देवी को अर्पित होते रहे। भाइयों और जनकों (पिताओं) ने अपनी टीस को ह्दय में दबा लिया। आज भारत सरकार के पास इस बात के आंकड़े ही नहीं हैं कि इस महासंग्राम में कितने क्रान्तिकारियों को असमय चिर निद्रा में लीन होना पड़ा। बलिदानियों की गिनती कौन करे जब उनके शत्रु परकीय फिरंगी ही नहीं भारत के ऐसे कृपण राजनेता भी थे, जिन्हें किसी भी तरह स्वतत्रन्ता का श्रेय और सर्वाधिकार समेटने की व्यग्रता थी।

यह सच है कि भारतीय संस्कृति के सदग्रन्थ नि:श्रेयश कर्म को महत्ता देते आये हैं। सद्कर्म करो उसके लिए जो भी बलिदान देना पड़े उससे पीछे न हटो। श्रीकृष्ण का यही तो कथन था- अन्याय के विरुद्ध संघर्ष में स्वयं को लाभार्थी सिद्ध करना भी एक प्रकार का अन्याय है। नैतिकता और आदर्श भारत की रज के प्रत्येक कण में श्रीराम के जीवन की देन है। भारत इन्हें कैसे त्याग दे। यही कारण है कि भारतीय जनमानस सदा नैतिकता पर बल देता आया है। जन जन की गुहार यही रहती है कि जो भी शासक नैतिकता के विरुद्ध आचरण करता है, वह वस्तुत: श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे नायकों की अहवेलना करता है। यही कारण है कि राजनेताओं से समाज की अपेक्षा नैतिक मूल्यों के पालन की होती है।

नैतिकता का आग्रह 2024 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक बयानों से सर्वथा दूर रहा। पर प्राय: प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में नैतिकता और आदर्शों की बातें मतदाताओं के होठों से छिटकती रहीं। शीर्ष पर बैठे नेताओं से मतदाता प्रश्न करते रहे कि क्या किसी चुनाव के अवसर पर भी अब नैतिकता और मानवीय मूल्यों की बातें सुनने को नहीं मिलेंगी। हमें महान राष्ट्रभक्त कुशल नेतृत्व की पहचान है। उनकी शैली से हम सब सन्तुष्ट हैं। भारत माता की जय की अनगूंज उनके ही कारण हो रही है। पर उनकी अनुकम्पा से जिन हाथों में राष्ट्र का ध्वज थमाया गया है, उनमें से बहुसंख्य का आचरण नैतिकता की बलि देता आ रहा है। अपावन चिन्तन, उच्छृंखल आचरण, असंयमित वाणी भला ये सब किन्हीं लम्पट और कुविचारी-कुचाली लोगों की पहचान नहीं कही जाएगी।

चुनाव के पूरे कालखण्ड में गली, चौराहों, नुक्कड़ों पर बहुतेरे प्रत्याशियों की आचरण हीनता पर तंज सुनने को मिलते रहे। माना की राजनीति नैतिकता को समर्पित लोगों का क्षेत्र नहीं रह गया। तो फिर भावी पीढ़ियों को पुस्तकों में क्या ऐसे वैसे लोगों का ही इतिहास पढ़ने को मिलेगा। नाविन्य इतिहास का नायक किन्हें बनाया जाएगा। कुछ लोगों की दृष्टि में यह चिन्तन का निरर्थक विषय हो सकता है। बहुतेरे लोग तर्क देते सुने जाते हैं कि नैतिकता को अब गर्द (धूल) लगी पुस्तकों तक सीमित रहने देना ही ठीक रहेगा। ऐसा हुआ तो नैतिकता और आदर्शों से जुड़ी भारतीय लोक परम्पराओं का क्या होगा। यह विचार अप्रासांगिक नहीं है। युद्ध के समय कर्ण भीष्म, द्रोणाचार्य जैसे योद्धा जब बाणों से मारे गये तो श्रीकृष्ण से हर बार लोगों ने पूछा। उन्होंने ऐसे लोगों के अतीत के पृष्ठ खोलकर उन्हें दिखाये। जिसने अनैतिक आचरण किया, मर्यादाहीनता दिखायी उसका बध करने में कैसा संकोच। तब तो श्रीकृष्ण के विचारों का आधार भारत से कभी मिटेगा ही नहीं। जो कुविचारी-कुचाली हैं उन्हें एक न एक दिन दण्ड भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। अच्छा हो अनुचित आचरणों से कलंकित अपने मुख मण्डल को समय रहते दर्पण में देखने का साहस ऐसे राजनीतिक नेताओं में लौट आए। जो सत्ता को केवल दुधारी गाय समझते आ रहे हैं। दलों के ऐसे शीर्ष नेता जिनके आचरण से जनमानस सन्तुष्ट है उन्हें विचार करना होगा कि पाप की चादर दूर ही रखनी चाहिए।

चन्द्रशेखर आजाद महान क्रान्तिवीर थे। एकबार उनसे किसी ने कहा कि आप की मॉ घनघोर विपन्नता में जी रही हैं। राष्ट्र के लिए काम करते हुए क्या आपको उनके दुखों की सुधि नहीं आती। आजाद ने अपनी पिस्तोल हाथ में उठाते हुए कहा कि मेरी मॉ ने अति पावन अमृत मुझे पिलाया है। वह कभी अपेक्षा नहीं करेंगी कि मैं राष्ट्र सेवा के काम से विरत हो जाऊं और उनके लिए सुखों का प्रबन्ध करने लग जाऊं। वह यह भी नहीं चाहेंगी कि किसी अनैतिक रीति से उन तक मैं धन पहुंचा दूं जिससे वह दुखों की बेड़ियां काट सकें। मेरा विश्वास अटूट है कि मेरी मॉ देवियों और देवताओं को भी सुखमय देखकर कभी मन मलीन नहीं करतीं। यदि ऐसा होता तो अपनी पिस्तोल की एक गोली उनके वक्ष स्थल पर उतार कर उन्हें मुक्त कर देता। जिससे वह सारे दुखों से दूर हो जायें। मेरी मॉ को भारत मॉ की बेड़ियॉ टूटने की प्रतीक्षा है। वह नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पित हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मैं अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में आजन्म रत रहूंगा।

हमारा देश भारत सनातन हिन्दू संस्कृति पर सतत अग्रसर पवित्र राष्ट्र है। ऐसी हर भुजा को क्रान्तिवीर काट कर फेंक देंगे जो भारत मॉ को अपावन कर रही हैं। भारत के क्रान्तिवीरों के मानस में अपने निज के सुखों के विचार सूख चुके हैं। भारत का समस्त जनमानस हमारा परिवार है। भुखमरी, बीमारी, अन्याय और विदेशी कुशासन से लड़ते हमारे भारतीय भाई कभी नैतिकता से मुंह नहीं मोड़ते। एक दिन ऐसा आएगा जब भारत पर हमारे भाइयों का शासन होगा। ऐसे भाई जो राष्ट्र सेवा से जुड़े होंगे, वह अन्याय नहीं करेंगे। अनीति पर नहीं चलेंगे। भ्रष्टाचार और व्यभिचार को घृणित मानेंगे। पुरखों के आदर्शों को जीवन्त रखेंगे। उस दिन की प्रतीक्षा करते हुए हजारों हजार क्रान्तिवीर, स्वतन्त्रता सेनानी भले जीवित न रहें पर हमारे भारत की नवीन पाढ़ियां ऐसे वीरों पर गर्व अवश्य करेंगी। जब कभी इतिहास के पन्ने पलटेंगी तो उन्हें उच्च नैतिकता का मूल्य ठीक प्रकार से पता चल जाएगा।

भारत की आत्मा पर चुनाव के समय हर बार बल पड़ता है। जब देश को एकबार फिर स्वार्थों के कारण बॉटने की चर्चा सुनने को मिलती है। धर्म के आधार पर भारत का बटवारा हुआ था, जिसे मोहम्मद अली जिन्ना ने उकसाया था। महात्मा गॉधी तथा उनके प्रिय शिष्य नेहरू ने स्वीकार कर लिया। स्वतन्त्रता के पूर्व चिन्हित एजेण्डे में धर्म के आधार पर देश के बटवारे की कोई बात नहीं थी। तो भी अंग्रेजों ने जिन्ना को आगे करके अपनी मनचाही करके दिखायी। उस समय के वॉयसराय लार्ड माउंटवेटन ने बड़ी चतुराई से पकिस्तान-हिन्दुस्तान को धर्म के नाम पर बांट दिया। अपनी लाज बचाने के लिए गॉधी ने एक बड़ा निर्णय किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भले धर्म के आधार पर अपने भविष्य की यात्रा करेगा। पर हम भारत को धर्म से दूर रखेंगे। इसके लिए अंग्रेजों की दी हुई सीख सेक्युलरिज्म स्वीकार की गई। यह छद्म धर्म निरपेक्षता भारत के लिए कलंक बन गई। 2024 के चुनाव में मुसलिम आरक्षण का मुद्दा विपक्ष ने प्रचण्डता से उठाया। अनैतिकता सिर चढ़कर बोल पड़ी। संविधान के प्रावधान धरे रह गये। संविधान की परिधि से बाहर जाकर पहली बार चुनाव में यह विषय गूंजता सुनायी पड़ा। यह भविष्य के लिए बड़े अपशकुन का संदेश है। भारत की नाविन्य पीढ़ियों को सावधान होना पड़ेगा। नैतिकता के पक्ष में खड़े जनमानस को हूंकार भरनी पड़ेगी। लोकतन्त्र में जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है। अपनी निर्णय क्षमता को पहचानना ही समय की मांग है। इस चुनाव के बाद भी लोकतन्त्र की घन्टियां बजेंगी। इसलिए समय की चेतावनी से जागने का अभ्यास करना पड़ेगा। अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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